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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१६९

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मैं अपने दिल में लाना पसन्द नहीं करता मगर मेरे पुराने दोस्त इन्द्रदेव आपसे कुछ पूछे बिना भी न रहेंगे। उन्हें चाहिए था कि अब भी अपने गुरुभाई का नाता निबाहें, मगर अफसोस, किसी बेविश्वासे ने उन्हें यह कहकर रंज कर दिया है कि "इन्दिरा और सरयू की किस्मतों का फैसला भी इन्हीं दारोगा साहब के हाथ से हुआ है!"

राजा गोपालसिंह के जुबानी थपेड़ों ने दारोगा का मुँह नीचा कर दिया। पुरानी बातों और करतूतों ने आँखों के आगे ऐसी भयानक मूरतें पैदा कर दी जिनके देखने की ताकत इस समय उसमें न थी। उसके दिल में एक तरह का दर्द सा मालूम होने लगा और उसका दिमाग चक्कर खाने लगा। यद्यपि उसकी बदकिस्मती और उसके पापों ने भयानक अन्धकार का रूप धारण करके उसे चारों तरफ से घेर लिया था, परन्तु इस अन्धकार में भी उसे सुबह के झिलमिलाते हुए तारे की तरह उम्मीद की एक बारीक और हलकी रोशनी बहुत दूर पर दिखाई दे रही थी जिसका सबब इन्द्रदेव था, क्योंकि इसे (दारोगा को) इन्दिरा और सरयू के प्रकट होने का हाल कुछ भी मालूम न था और वह यही समझ रहा था कि इन्द्रदेव पहले की तरह अभी तक इन बातों से बेखबर होगा और इन्दिरा तथा सरयू भी तिलिस्म के अन्दर मर-खप कर अपने बारे में मेरी बदकारियों का सबूत अपने साथ ही लेती गई होंगी। अस्तु, ताज्जुब नहीं कि आज भी इन्द्रदेव मुझे अपना गुरुभाई समझ कर मदद करे। इसी सबब से उसने मुश्किल से अपने दिल को सम्हाला और इन्द्रदेव की तरफ देख के कहा––

"राम-राम, भला इस अनर्थ का भी कुछ ठिकाना है! क्या आप भी इस बात को सच मान सकते हैं?"

इन्द्रदेव––अगर इन्दिरा मर गई होती और यह कलमदान नष्ट हो गया होता तो इस बात को मानने के लिए मुझे जरूर कुछ उद्योग करना पड़ता।

इतना कहकर इन्द्रदेव ने इन्दिरा की तस्वीर वाला वह कलमदान निकालकर सामने रख दिया।

इन्द्रदेव की बातें सुन और इस कलमदान की सूरत पुनः देख कर दारोगा की बची-बचाई उम्मीद भी जाती रही। उसने भय और लज्जा से सिर झुका लिया और बदन में पैदा हुई भई कँपकँपी को रोकने का उद्योग करने लगा। इसी बीच में भूतनाथ बोल उठा––

"दारोगा साहब, इन्दिरा को आपके पंजे से बार-बार छुड़ाने वाला भूतनाथ भी तो आपके सामने ही मौजूद है और अगर आप चाहें तो उस कम्बख्त औरत से भी मिल सकते हैं जिसने उस बाग में आपको कुएँ के अन्दर धकेला था और बेचारी इन्दिरा को दुःख के अथाह समुद्र से बाहर किया था।"

भूतनाथ की बात सुनते ही दारोगा काँप गया और घबड़ाकर उन नये आये हुए दोनों नकाबपोशों की तरफ देखने लगा। उसी समय उनमें से एक नकाबपोश ने नकाब हटा कर रूमाल से अपने चेहरे को इस तरह पोंछा जैसे पसीना आने पर कोई अपने चेहरे को साफ करता है लेकिन इससे उसका असल मतलब केवल इतना ही था कि दारोगा उसकी सूरत देख ले।