पहले ही से उसकी तरफ जम रहीं, और इसके बाद तुरन्त अपना चेहरा ढाँप लिया।
न मालूम उस नकाबपोश की सूरत में क्या बात थी कि उसे देखते ही जयपाल की सूरत बिगड़ गई और काँपता तथा नकाबपोश की तरफ देखता हुआ अपने हथकड़ी सहित हाथों को जोड़कर बोला, "बस-बस, माफ कीजिए, बेशक यह चिट्ठी मेरे हाथ की लिखी हुई है! ओफ, मैं नहीं जानता था कि तुम अभी जीते हो? मैं तुम्हारी तरफ देखना नहीं चाहता हूँ!"
इतना कहकर जयपाल ने दोनों हाथों से अपनी आँखें ढक लीं और लम्बी-लम्बी साँसें लेने लगा।
इस नकाबपोश की सूरत पर सभी की तो नहीं, मगर बहुतों की निगाह पड़ी। हमारे राजा साहब, ऐयार लोग, गोपालसिंह, इन्द्रदेव और भूतनाथ वगैरह ने भी इसे देखा, मगर पहचाना किसी ने भी नहीं, क्योंकि इन लोगों में से किसी ने भी आज के पहले इसे देखा न था। इसके अतिरिक्त पहले दिन दरबार में नकाबपोश की जो सूरत दिखाई दी थी, उसमें और आज की सूरत में जमीन-आसमान का फर्क था। इस विषय में लोगों ने यह खयाल कर लिया कि पहले दिन एक नकाबपोश ने सूरत दिखाई थी और आज दूसरे ने, क्योंकि नकाब और पोशाक इत्यादि के खयाल से जाहिर में दोनों नकाबपोश एक ही रंग-ढंग के थे।
इन नकाबपोशों की तरफ से भूतनाथ का दिल तरद्दुद और खुटके से खाली न था। पहले दिन उस नकाबपोश की जो सूरत भूतनाथ ने देखी, उसे उसने अपने दिल में अच्छी तरह नक्श कर लिया था––बल्कि एक कागज पर उसकी सूरत (तस्वीर) भी बना कर तैयार कर ली थी और आज भी इसी नीयत से उसी सुरत के विषय में बारीक निगाह से भूतनाथ ने काम लिया, मगर ताज्जुब कर रहा था कि ये दोनों कौन हैं जो बेवजह मेरी मदद कर रहे हैं और ये गुप्त बातें इन दोनों को कैसे मालूम हुईं।
थोड़ी देर तक वह नकाबपोश चुप रहा और इसके बाद उसने राजा साहब की तरफ देख के कहा, "महाराज देखते हैं कि मैं इस मुकदमे की गुत्थी को किस तरह सुलझा रहा हूँ और इस जयपाल के दिल पर मेरी सूरत का क्या असर पड़ा, अब मैं इसी जगह एक और भी गुप्त बात की तरफ इशारा करना चाहता हूँ जिसका हाल शायद अभी तक भूतनाथ को भी मालूम न होगा। वह यह है कि मनोरमा इस (बेगम की तरफ बताकर) बेगम की एक मौसेरी बहिन है और भूतनाथ की गुप्त सहेली नन्हों से गहरी मुहब्बत रखती है। यही सबब है कि भूतनाथ के घर से यह गठरी गायब हुई और जयपाल ने भी यह प्रकट होने के साथ ही लामाघाटी[१] की तरफ इशारा करके भूतनाथ को काबू में कर लिया। इस बात को महाराज तो न जानते होंगे, मगर भूतनाथ को इनकार करने की जगह अब नहीं तो दो दिन बाद न रहेगी।
नकाबपोश की इस बात ने भूतनाथ को चौंका दिया और उसने घबराकर नकाबपोश से कहा, "क्या यह बात आप पूरी तरह से समझ-बूझकर कह रहे हैं?"
- ↑ देखिए चन्द्रकान्ता संतति, ग्यारहवाँ भाग, आठवाँ बयान।