मायारानी––निकाल ला सकती है और दीवान साहब से भी जो कुछ माँगेगी, सम्भव है कि बिना कुछ विचारे दे दें, मगर इसमें भी मुझे दो बातों की कठिनाई मालूम पड़ती है।
लीला––वह क्या?
मायारानी––एक तो दीवान साहब के पास अन्दाज से ज्यादा रुपये-अशफियों की तहवील नहीं रहती और जवाहरात तो बिल्कुल ही उसके पास नहीं रहते, शायद आज कल गोपालसिंह के हुक्म से रहता हो, मगर मुझे उम्मीद नहीं है, अब जो चीज तू उससे माँगेगी, वह अगर उसके पास न हुई तो उसे तुझ पर शक करने की जगह मिलेगी और ताज्जुब नहीं कि काम में विघ्न पड़ जाय।
लीला––अगर ऐसा है तो जरूर खुटके की बात है, अच्छा दूसरी बात क्या है?
मायारानी––दूसरे यह कि तिलिस्मी बाग के खजाने में घुसकर वहाँ से कुछ निकाल लाना, नये आदमी का काम नहीं है। खैर, मैं तुझे रास्ता बता दूँगी, फिर जो कुछ करते बने, तू कर लेना।
लीला––खैर, जैसा होगा देखा जायगा, मगर मैं यह रांय कभी नहीं दे सकती कि साहब के सामने या खास बाग में जाओ, ज्यादा नहीं तो थोड़ा-बहुत मैं ले ही आऊँगी।
मायारान––अच्छा, यह बता कि मुझे कहाँ छोड़ जायगी और तेरे जाने मैं क्या करूँगी?
लीला––इतनी जल्दी में कोई अच्छी जगह तो मिलती नहीं, किसी पहाड़ कन्दरा में दो दिन गुजारा करो और चुपचाप बैठी रहो, इसी बीच में मैं अपना काम करके लौट आऊँगी। मुझे जमानिया जाने में अगर देर हो जायगी तो काम चौपट हो जायगा। ताज्जुब नहीं कि देर हो जाने के कारण गोपालसिंह किसी दूसरे को भेज दें और अँगूठी का भेद खुल जाय।
इत्तिफाक अजब चीज है। उसने यहाँ भी एक बेढब सामान खड़ा कर दिया। इत्तिफाक से लीला और मायारानी भी उसी जंगल में जा पहुँची जिसमें माधवी और भीमसेन का मिलाप हुआ था और वे लोग अभी तक वहाँ टिके हुए थे
5
आधी रात का समय था जब लीला और मायारानी उस जंगल में पहुँची जिसमें माधवी और भीमसेन टिके हुए थे। जब ये दोनों उसके पास पहुँची और लीला को वहाँ टिके हुए बहुत से आदमियों की आहट मिली तो वह मायारानी को एक ठिकाने खड़ा करके पता लगाने के लिए उसकी तरफ गई।
हम ऊपर बयान कर चुके है कि सेनापति कुबेरसिंह के साथ थोड़ी-सी फौज भी