था कि बहुत जल्द सूख जायेगा, क्योंकि नीचे की जमीन पक्की और संगीन बनी हुई थी, केवल नाम मात्र को मिट्टी या कीचड़ का हिस्सा उस पर था। इसके अतिरिक्त किसी सुरंग या नाली की राह निकल जाते हुए पानी ने भी बहुत-कुछ सफाई कर दी थी।
बावली के नीचे वाली चारों तरफ की अन्तिम सीढ़ी लगभग तीन हाथ के ऊँची थी और उसकी दीवार में चारों तरफ चार दरवाजों के निशान बने हुए थे जिसमें से पूरब की तरफ वाले निशान को दोनों कुमारों ने तिलिस्मी खंजर से साफ किया। जब उसके आगे वाले पत्थरों को उखाड़कर अलग किया तो अन्दर जाने के लिए रास्ता दिखाई दिया जिसके विषय में कह सकते हैं कि वह एक सुरंग का मुहाना था और इस ढंग से बन्द किया गया था जैसा कि ऊपर बयान कर चुके हैं।
इसी सुरंग के अन्दर कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह को जाना था, मगर पहर भर तक उन्होंने इस खयाल से उसके अन्दर जाना मौकूफ रखा था कि उसके अन्दर से पुरानी हवा निकलकर ताजी हवा भर जाये, क्योंकि यह बात उन्हें पहले ही से मालूम थी कि दरवाजा खुलने के बाद थोड़ी ही देर में उसके अन्दर की हवा साफ हो जायेगी।
पहर भर दिन बाकी था जब दोनों कुमार उस सुरंग के अन्दर घुसे और तिलिस्मी खंजर की रोशनी करते हुए आधे घण्टे तक बराबर चले गये। सुरंग में कई जगह ऐसे सूराख बने हुए थे जिनमें से रोशनी तो नहीं मगर हवा तेजी के साथ आ रही थी और यही सबब था कि उसके अन्दर की हवा थोड़ी देर में साफ हो गई।
आप सुन चुके होंगे कि तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में (जहाँ के देवमन्दिर में दोनों कुमार कई दिन तक रह चुके हैं) देवमन्दिर के अतिरिक्त चारों तरफ चार मकान बने हुए थे[१] और उसमें से उत्तर की तरफ वाला मकान गोलाकार स्याह पत्थर का बना हुआ था तथा उसके चारों तरफ चर्खियाँ और तरह-तरह के कल-पुर्जे लगे हुए थे। उस सुरंग का दूसरा मुहाना उसी मकान के अन्दर था और इसीलिए सुरंग के बाहर होकर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह ने अपने को उसी मकान में पाया। इस मकान के चारों तरफ एक गोलाकार दालान के अतिरिक्त कोई कोठरी या कमरा न था। बीच में एक संगमरमर का चबूतरा था और उस पर स्याह रंग का एक मोटा आदमी बैठा हुआ था जो जाँच करने पर मालूम हुआ कि लोहे का है। उसी आदमी के सामने की तरफ दालान में सुरंग का वह मुहाना था जिसमें से दोनों कुमार निकले थे। उसी सुरंग की बगल में एक और सुरंग थी और उसके अन्दर उतरने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई थीं। चारों तरफ देख-भाल करने के बाद दोनों कुमार उसी सुरंग में उतर गये और आठ-दस सीढ़ी नीचे उतर जाने के बाद देखा कि सुरंग खुलासा है तथा बहुत दूर तक चली गई है। लगभग सौ कदम तक दोनों कुमार बे-खटके चले गये और इसके बाद वे एक छोटे से बाग में पहुँचे जिसमें खूबसूरत पेड़-पत्तों का तो कहीं नाम-निशान भी न था हाँ, जंगली बेर, मकोय तथा केले के पेड़ों की कमी भी न थी। दोनों कुमार सोचे हुए थे कि यहाँ भी और जगहों की तरह हम सन्नाटा पाएंगे किसी आदमी की सूरत दिखाई न देगी मगर ऐसा न था। वहां कई आदमियों को इधर-
- ↑ देखिए नौवां भाग, पहला बयान।