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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/२००

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आदमी––जी हाँ, अब हम लोगों को विश्वास हो गया, क्योंकि हम लोगों ने इस चबूतरे को कई दफे आजमाकर देख लिया है। इस पर बैठना तो दूर रहा, हम इसे छूने के साथ ही बेहोश हो जाते थे, मगर ताज्जुब है कि आप पर इसका असर कुछ भी नहीं होता।

इन्द्रजीतसिंह––इस समय तुम लोग भी इस चबूतरे पर बैठ सकते हो जब तक हम बैठे हैं।

आदमी––(चबूतरा छूने की नीयत से बढ़ता हुआ) क्या ऐसा हो सकता है?

इन्द्रजीतसिंह––आजमा के देख लो।

उस आदमी ने चबूतरा छूआ मगर उस पर कुछ बुरा असर न हुआ और तब कुमार की आज्ञा पा वह चबूतरे पर बैठ गया। उसकी देखा-देखी सभी आदमी उस चबूतरे पर बैठ गये और जब किसी तरह का बुरा असर होते न देखा, तब हाथ जोड़कर कुमार से बोले, "अब हम लोगों को आपकी बात में किसी तरह का शक न रहा, आशा है कि आप कृपा करके अपना परिचय देंगे।"

जब कुँअर इन्द्रजीतसिंह ने अपना परिचय दिया, तब सब-के-सब उनके पैरों पर गिर पड़े और डबडबाई आँखों से उनकी तरफ देखकर बोले, "दुहाई है, महाराज की! हमारे मामले पर विचार होकर दुष्टों को दण्ड मिलना चाहिए।"

इतना कहकर नकाबपोश चुप हो गया और कुछ सोचने लगा। इसी समय वीरेन्द्रसिंह ने उससे कहा, "मालूम होता है कि उस चबूतरे में बिजली का असर था और इस सबब से उसे कोई छू नहीं सकता था, मगर दोनों लड़कों के पास बिजली वाला तिलिस्मी खंजर मौजूद था और उसके जोड़ की अँगूठी भी, इसलिए तब तक के लिए उसका असर जाता रहा, जब तक दोनों लड़के उस पर बैठे रहे।"

नकाबपोश––(हाथ जोड़कर) जी, बेशक यही बात है।

वीरेन्द्रसिंह––अच्छा, तब क्या हुआ?

नकाबपोश––इसके बाद कुमार ने उन सबका हाल पूछा और उन सबने रो-रोकर अपना हाल बयान किया।

वीरेन्द्रसिंह––उन लोगों ने अपना हाल क्या कहा?

नकाबपोश––मैं यही सोच रहा था कि उन लोगों ने जो कुछ अपना हाल बयान किया वह मैं इस समय कहूँ या न कहूँ।

तेजसिंह––क्या उन लोगों का हाल कहने में कोई हर्ज है? आखिर हम लोगों को मालूम तो होगा ही।

नकाबपोश––जरूर मालूम होगा और मेरी ही जुबानी मालूम होगा। मैं जो कहने से रुकता हूँ, वह केवल एक ही दो दिन के लिए, हमेशा के लिए नहीं।

तेजसिंह––यही बात है तो हमें एक दिन के लिए कोई जल्दी भी नहीं।

नकाबपोश––(हाथ जोड़कर) अतः अब आज्ञा हो तो हम लोग डेरे पर जायें।

कल पुनः सभा में उपस्थित होकर यदि देवीसिंह और भूतनाथ न आये, तो कुमार का हाल सुनावेंगे।