पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/३४

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में लोहे की कड़ियाँ लगी हुई थीं। भैरोंसिंह और गोपालसिंह दोनों आदमी कड़ियों के सहारे इस कुएँ में उतर गये।

किसी ठिकाने पर छिपी हुई मायारानी इस तमाशे को देख रही थी। गोपालसिंह और भैरोंसिंह को आते देख वह बहुत खुश हुई और उसे निश्चय हो गया कि अब हम लोग गोपालसिंह को मार लेंगे। जिस जगह वह बैठी हुई थी। वहाँ पर माधवी कुबेरसिंह, भीमसेन और ऐयारों के अतिरिक्त बीस आदमी फौजी सिपाहियों में से भी मौजूद थे और बाकी फौजी सिपाही तहखानों में छिपाये हुए थे। पहले तो मायारानी ने चाहा कि केवल हम ही लोग बीस सिपाहियों के साथ जाकर गोपालसिंह को गिरफ्तार कर लें, मगर जब उसे कृष्ण जिन्न वाली बात याद आई और यह खयाल हुआ कि गोपालसिंह के पास वह तिलिस्मी खंजर और कवच जरूर होगा जो रोहतासगढ़ में उनके पास उस समय मौजूद था जब शेरअली और दारोगा के साथ हम लोग वहाँ गये थे, तब उसकी हिम्मत टूट गई और बिना कुछ फौजी सिपाहियों को साथ लिए गोपालसिंह के पास जाना उचित न जाना। इसी बीच में उसके देखते-देखते गोपालसिंह कुएँ के भीतर चले गये।

इस तिलिस्मी बाग के अन्दर आने तथा यहाँ से बाहर जाने वाला दरवाजा जिस तरह बन्द होता है, इसका हाल उस समय लिखा जा चुका है जब पहली दफा इस बाग में मायारानी के ऊपर आफत आई थी और मायारानी ने सिपाहियों के बागी हो जाने पर बाहर जाने का रास्ता बन्द कर दिया था, अब इस समय भी उसी ढंग से मायायानी ने बाग का दरवाजा बन्द कर दिया और इसके बाद कुल सिपाहियों को तहखाने में से निकालकर माधवी, भीमसेन और कुबेरसिंह तथा ऐयारों को साथ लिए उस कुएँ पर पहुँची जिसके अन्दर भैरोंसिंह को साथ लिए हुए राजा गोपालसिंह उतर गये थे।

मायारानी ने सोचा था कि आखिर गोपालसिंह उस कुएँ के बाहर निकलेंगे ही, उस समय हम लोग उन्हें सहज ही में मार लेंगे, बल्कि कुएँ से बाहर निकलने की मोहलत ही न देंगे––इत्यादि, मगर जब बहुत देर हो गई और रात हो जाने पर भी गोपालसिंह कुएँ के बाहर न निकले, तो उसे बड़ा ही ताज्जुब हुआ। वह खुद कुएँ के अन्दर झाँककर देखने लगी और उसी समय चौंक कर माधवी से बोली––

मायारानी––क्यों बहिन, आज ही तुमने भी देखा था कि इस कुएँ में पानी कितना ज्यादा था!

माधवी––बेशक मैंने देखा था कि बीस हाथ से ज्यादा दूरी पर पानी नहीं है, तो क्या इस समय पानी कम जान पड़ता है?

मायारानी––कम क्या मैं तो समझती हूँ कि इस समय इसमें कुछ भी पानी नहीं है और कुआँ सूखा पड़ा है।

माधवी––(ताज्जुब से) ऐसा नहीं हो सकता। एक पत्थर इसमें फेंक कर देखो।

मायारानी––आओ, तुम ही देखो।

माधवी ने अपने हाथ से ईंट का टुकड़ा कुएँ के अन्दर फेंका और उसकी आवाज पर गौर करके बोली––