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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/६९

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अशर्फियाँ देता है तो अगर मैं इसका काम करूँगा तो बेशक बहुत बड़ी रकम मुझे देगा। ऐसा देने वाला तो आज तक मैंने देखा ही नहीं। अब इस रकम को हाथ से न जाने देना चाहिए।

जमादार––(अशर्फियाँ लेकर) कहिये, क्या आज्ञा होती है?

जौहरी––हाँ, तो चार आदमी का पहरा बँधा है?

जमादार––जी हाँ।

जौहरी––तो तुम्हें तो न घूमना पड़ता होगा?

जमादार––जी नहीं, मैं अपने ठिकाने उसी फाटक पर बैठा रहता हूँ और बाकी के आठ आदमी भी मेरे पास ही सोये रहते हैं। जब पहरा बदलने का समय होता है तो घण्टे की आवाज से होशियार करके दूसरे चार को पहरे पर भेज देता हूँ और उन चारों को बुलाकर आराम करने की आज्ञा देता हूँ। आप अपना मतलब तो कहिए!

जौहरी––मेरा मतलब केवल इतना ही है कि मैं आज चार दिन का जागा हुआ हूँ, सफर में आराम करने की नौबत नहीं आई, मगर आज सब दिन की कसर मिटाना अर्थात् अच्छी तरह सोना चाहता हूँ।

जमादार––तो आप आराम से सोइये, कोई हर्ज नहीं।

जौहरी––मैं क्योंकर बेफिक्री के साथ सो सकता हूँ! मेरे साथ बहुत बड़ी रकम है। (कमरे में रखे हुए सन्दूकों की तरफ इशारा करके) इन सभी में जवाहरात की चीजें भरी हुई हैं। जब तक मेरे मन के माफिक इनकी हिफाजत का बन्दोबस्त न हो जायगा, तब तक मुझे नींद आ ही नहीं सकती।

जमादार––आप इन्हें बहुत बड़ी हिफाजत के अन्दर समझिए, क्योंकि इस सराय के अन्दर से चोरी करके कोई बाहर नहीं निकल सकता, इसलिए कि फाटक बन्द करके ताली मैं अपने पास रखता हूँ और सिवाय फाटक के दूसरे किसी तरफ से किसी के निकल जाने का रास्ता ही नहीं है।

जौहरी––ठीक है, मगर आखिर बहुत सवेरे फाटक खुलता ही होगा। कौन ठिकाना मैं कई दिनों का जागा हुआ गहरी नींद में सो जाऊँ और मेरे आदमी भी मुझे बेफिक्र देख खुर्राटे लेने लगें और दिन चढ़े तक किसी की आँख ही न खुले, तो ऐसी हालत में कोई चोरी करेगा भी तो प्रातः समय में फाटक खुलने पर उसका निकल जाना कोई बड़ी बात न होगी।

जमादार––ठीक है, मगर मैं वादा करता हूँ कि सुबह मैं आपसे पूछकर फाटक खोलूँगा।

जौहरी हो सकता है, परन्तु कदाचित चोरी हो ही जाय और चोर पकड़ा भी जाय तो मुझे राजा या किसी राजकर्मचारी के पास सबूत देने के लिए जाना पड़ेगा और ऐसा होने से मेरा बहुत बड़ा हर्ज होगा, ताज्जुब नहीं कि राजा साहब या राजकर्मचारी मुझे ठहरने की आज्ञा दें, मगर मैं एक दिन भी नहीं रुक सकता, इत्यादि बहुत-सी बातों को सोचकर मैं चाहता हूँ कि चोरी होने का शक ही न रहे और मैं आराम के साथ टाँगें फैलाकर सोऊँ और यह बात यदि तुम चाहो तो सहज ही में हो सकती है, इसके बदले