सब हमारी जिन्दगी के धागे में किसी तरह का खिंचाव पैदा न करेंगी।
इन्द्रजीतसिंह––मगर उसमें लंगर की तरह लटकने के लिए इतना बड़ा बोझ जरूर लाद देंगी कि जिसका सहन करना सम्भव नहीं तो असह्य अवश्य होगा।
आनन्दसिंह––हाँ, अब यदि हम लोगों को कुछ सोचना तो है इसी विषय में···
इन्द्रजीतसिंह––अफसोस ऐसे समय में भैरोंसिंह को भी इत्तिफाक ने हम लोगों से अलग कर दिया। ऐसे मौकों पर उसकी बुद्धि अनूठा काम किया करती है। (कुछ रुककर) देखो तो, सामने से वह कौन आ रहा है!
आनन्दसिंह––(खुशी-भरी आवाज में ताज्जुब के साथ) यह तो भैरोंसिंह ही है! अब कोई परवाह की बात नहीं है अगर यह वास्तव में भैरोंसिंह ही है।
अपने से थोड़ी ही दूर पर दोनों कुमारों ने भैरोंसिंह को देखा जो एक कोठरी के अन्दर से निकलकर इन्हीं की तरफ आ रहा था। दोनों कुमार उठ खड़े हुए और मिलने के लिए खुशी-खुशी भैरोंसिंह की तरफ रवाना हुए। भैरोंसिंह ने भी इन्हें दूर से देखा और तेजी के साथ चलकर इन दोनों भाइयों के पास आया। दोनों भाइयों ने खुशी-खुशी भैरोंसिंह को गले लगाया और उसे साथ लिए हुए उसी चबूतरे पर आए जिस पर इन्द्रानी उनको बैठा गई थी।
इन्द्रजीतसिंह––(चबूतरे पर बैठकर) भैरोंसिंह भाई, यह तिलिस्म का कारखाना है, यहाँ फूंक-फूंक के कदम रखना चाहिए, अतः यदि मैं तुम पर शक करके तुम्हें जाँचने का उद्योग करूं तो तुम्हें खफा न होना चाहिए।
भैरोंसिंह––नहीं-नहीं, मैं ऐसा बेवकूफ नहीं हूँ कि आप लोगों की चालाकी और बुद्धिमानी की बातों से खफा हो जाऊँ, तिलिस्म और दुश्मन के घर में दोस्तों की जाँच बहुत जरूरी है। बगल वाला लसा और कमर का दाग दिखलाने के अतिरिक्त बहुत-सी बातें ऐसी हैं जिन्हें सिवाय मेरे और आपके दूसरा कोई भी नहीं जानता जैसे 'लड़कपन वाला मजनूँ।'
इन्द्रजीतसिंह––(हँसकर)बस-बस, मुझे जाँच करने की कोई जरूरत नहीं रही, अब यह बताओ कि तुम्हारा बटुआ तुम्हें मिला या नहीं?
भैरोंसिंह––(ऐयारी का बटुआ कुमार के आगे रखकर) आपके तिलिस्मी खंजर की बदौलत मेरा यह बटुआ मुझे मिल गया। शुक्र है कि इसमें की कोई चीज नुकसान में नहीं गई सब ज्यों-की-त्यों मौजूद हैं। (तिलिस्मी खंजर और उसके जोड़ की अँगूठी देकर) लीजिए अपना तिलिस्मी खंजर, अब मुझे इसकी कोई जरूरत नहीं, मेरे लिए मेरा बटुआ काफी है।
इन्द्रजीतसिंह––(अँगूठी और तिलिस्मी खंजर लेकर) अब यद्यपि तुम्हारा किस्सा सुनना बहुत जरूरी है क्योंकि हम लोगों ने एक आश्चर्यजनक घटना के अन्दर तुम्हें छोड़ा था, मगर इस सबके पहले अपना हाल तुम्हें सुना देना हमें उचित जान पड़ता है क्योंकि एकान्त का समय बहुत कम है और उन दोनों औरतों के आ जाने में बहुत विलम्ब नहीं है जिनकी बदौलत हम लोग यहाँ आए हैं और जिनके फेर में अपने को पड़ा हुआ समझते हैं।
भैरोंसिंह––क्या किसी औरत ने आप लोगों को धोखा दिया?