पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१११

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एक छोटा-सा लोहे का दरवाजा मिला, जिसे उसी हीरे वाली तिलिस्मी ताली से खोला, और तब सबको लिए हुए दोनों कुमार तिलिस्मी चबूतरे के बाहर हुए।

सब कोई तिलिस्म की सैर करके लौट आये और अपने-अपने काम-धंधे में लगे । कैदियों के मुकदमे को थोड़े दिन तक मुल्तवी रखकर कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह की शादी पर सबने ध्यान दिया और इसी के इन्तजाम की फिक्र करने लगे। महाराज सुरेन्द्रसिंह ने जो काम जिसके लायक समझा, उसके सुपुर्द करके कुल कैदियों को चुनारगढ़ भेजने का हुक्म दिया और यह भी निश्चय कर लिया कि दो-तीन दिन के बाद हम लोग भी चुनारगढ़ चले जायेंगे, क्योंकि बारात चुनारगढ़ ही से निकलकर यहाँ आयेगी।

भरतसिंह और दिलीपशाह वगैरह का डेरा बलभद्रसिंह के पड़ौस ही में पड़ा और दूसरे मेहमानों के साथ-ही-साथ इनकी खातिरदारी का बोझ भी भूतनाथ के ऊपर डाला गया। इस जगह संक्षेप में हम यह भी लिख देना उचित समझते हैं कि कौन काम किसके सुपुर्द किया गया।

(1) इस तिलिस्मी इमारत के इर्द-गिर्द जिन मेहमानों के डेरे पड़े हैं, उन्हें किसी बात की तकलीफ तो नहीं होती, इस बात को बराबर मालूम करते रहने का काम भूतनाथ के सुपुर्द किया गया-

(2) मोदी, बनिए और हलवाई वगैरह किसी से किसी चीज का दाम तो नहीं लेते, इस बात की तहकीकात के लिए रामनारायण ऐयार मुकर्रर किए गए।

(3) रसद वगैरह के काम में कहीं किसी तरह की बेईमानी तो नहीं होती, या चोरी का नाम तो किसी की जुबान से नहीं सुनाई देता, इसको जानने और शिकायतों के करने पर चुन्नीलाल ऐयार तैनात किए गए।

(4) इस तिलिस्मी इमारत से लेकर चुनारगढ़ तक की सड़क और उसकी सजावट का काम पन्नालाल और पण्डित बद्रीनाथ के जिम्मे किया गया।

(5) चुनारगढ़ में बाहर से न्यौते में आए हुए पण्डितों की खातिरदारी और पूजा-पाठ इत्यादि के सामान की दुरुस्ती का बोझ जगन्नाथ ज्योतिषी पर डाला गया।

(6) बारात और महफिल वगैरह की सजावट तथा उसके सम्बन्ध में जो कुछ काम हो, उसके जिम्मेवार तेजसिंह बनाये गये।

(7) आतिशबाजी और अजायबातों के तमाशे तैयार करने के साथ-ही-साथ उसी तरह की एक इमारत के बनवाने का हुक्म इन्द्रदेव को दिया गया, जैसी इमारत के अन्दर हँसते-हँसते इन्द्रजीतसिंह वगैरह एक दफे कूद गये थे, और जिसका भेद अभी तक खोला नहीं गया है।

(8) पन्नालाल वगैरह के बदले में रणधीरसिंहजी के डेरे की हिफाजत तथा किशोरी, कामिनी वगैरह की निगरानी के जिम्मेवार देवीसिंह बनाये गये।

(9) ब्याह-सम्बन्धी खर्च की तह्वील (रोकड़) राजा गोपालसिंह के हवाले की गई।

1. देखिए चन्द्रकान्ता सन्तति, पाँचवाँ भाग, चौथा बयान ।