पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/११४

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इस अवसर पर आवेंगे ही, आप भी देख लीजिएगा। आपने कमलिनी से इस बारे में कुछ बातचीत नहीं की?

इन्द्रजीतसिंह--इधर तो नहीं, मगर तिलिस्म की सैर को जाने से पहले मुलाकात हुई थी, उसने खुद मुझे बुलाया था, बल्कि उसी की जुबानी उसकी शादी का हाल मुझे मालूम हुआ था। मगर उसने मेरे साथ विचित्र ढंग का बर्ताव किया।

भैरोंसिंह–-सो क्या? इन्द्रजीतसिंह--(जो कुछ कैफियत हो चुकी थी, उसे बयान करने के बाद)तुम इस बर्ताव को कैसा समझते हो?

भैरोंसिंह--बहुत अच्छा और उचित।

इसी तरह की बातचीत हो रही थी कि पहले दिन की तरह बगल वाले कमरे का दरवाजा खुला, और एक लौंडी ने आकर सलाम करने के बाद कहा, "कमलिनीजी आपसे मिलना चाहती हैं, आज्ञा हो तो।"

इन्द्रजीतसिंह--अच्छा, मैं चलता हूं, तू दरवाजा बन्द कर दे।

भैरोंसिंह–-अब मैं भी जाकर आराम करता हूँ।

इन्द्रजीतसिंह--अच्छा, जाओ, फिर कल देखा जायेगा।

लौंडी–-इनसे (भैरोंसिंह से) भी उन्हें कुछ कहना है।

यह कहती हुई लौंडी ने दरवाजा बद कर दिया, तब तक स्वयं कमलिनी इस कमरे में आ पहुंची, और भैरोंसिंह की तरफ देखकर बोली, (जो उठकर बाहर जाने के लिए तैयार था) "आप कहाँ चले ? आप ही से तो मुझे बहुत-सी शिकायत करनी है।"

भैरोंसिंह–-सो क्या ?

कमलिनी--अब उसी कमरे में चलिये, वहीं बातचीत होगी।

इतना कहकर कमलिनी ने कुमार का हाथ पकड़ लिया, और अपने कमरे की तरफ ले चली, पीछे-पीछे भैरोंसिंह भी गये । लौंडी दरवाजा बन्द करके दूसरी राह से बाहर चली गई और कमलिनी ने इन दोनों को उचित स्थान पर बैठाकर पानदान आगे रख दिया और भैरोंसिंह से कहा, "आप लोग तिलिस्म की सैर कर आये और मुझे पूछा भी नहीं !"

भैरोंसिंह–-महाराज खुद कह चुके हैं कि शादी के बाद औरतों को भी तिलिस्म की सैर करा दी जाये और फिर तुम्हारे लिए तो कहना ही क्या है । तुम तो जब भी चाहो, तभी तिलिस्म की सैर कर सकती हो।

कमलिनी--ठीक है, मानो यह मेरे हाथ की बात है!

भैरोंसिंह--ऐसा ही है।

कमलिनी--(हंसकर) टालने के लिए यह अच्छा ढंग है ! खैर, जाने दीजिये, मुझे कुछ ऐसा शौक भी नहीं है । हाँ, यह बताइए कि वहाँ क्या-क्या कैफियत देखने में आई ? मैंने सुना कि भूतनाथ वहाँ बड़े चक्कर में पड़ गया था और उसकी पहली स्त्री भी वहाँ दिखाई पड़ गई।