पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१४५

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शान्ता सोई हुई है । परन्तु उनका लड़का हरामसिंह खेमे के अन्दर दिखाई न दिया और उसके लिए नानक को कुछ चिन्ता हुई, तथापि वह साहस करके खेमे के अन्दर चला ही गया।

डरता-काँपता नानक धीरे-धीरे चारपाई के पास पहुंच गया, चाहा कि खंजर से इन दोनों का गला काट डाले, मगर फिर यह सोचने लगा कि पहले किस पर वार करूं, भूतनाथ पर या शान्ता पर? वे दोनों सिर से पैर तक चादर ताने पड़े हुए थे, इससे यह मालूम करने की जरूरत थी कि किस चारपाई पर कौन सो रहा है, साथ ही इसके नानक इस बात पर भी गौर कर रहा था कि रोशनी बुझा दी जाये या नहीं। यद्यपि वह वार करने के लिए खंजर हाथ में ले चुका था, मगर उसकी दिली कमजोरी ने उसका पीछा नहीं छोड़ा था और उसका हाथ कांप रहा था।


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किशोरी, कामिनी, कमलिनी और लाड़िली ये चारों बड़ी मुहब्बत के साथ अपना दिन बिताने लगीं। इनकी मुहब्बत दिखावा नहीं थी, बल्कि दिली और सचाई के साथ थी। चारों ही जमाने के ऊँच-नीच को अच्छी तरह समझ चुकी थीं और खूब जानती थीं कि दुनिया में हर एक के साथ दुःख और सुख का चरखा लगा ही रहता है, खुशी तो मुश्किल से मिलती है, मगर रंज और दुःख के लिए किसी तरह का उद्योग नहीं करना पड़ता, यह आप से आप पहुँचता है, और एक साथ दस को लपेट लेने पर भी जल्दो नहीं छोड़ता, इसलिए बुद्धिमान का काम यही है कि जहाँ तक हो सके खुशी का पल्ला न छोड़े और न कोई काम ऐसा करे, जिसमें दिल को किसी तरह का रंज पहुँचे । इन चार औरतों का दिल उन नादान और कमीनी औरतों का सा नहीं था, जो दूसरों को खुण देखते ही जलभुन कर कोयला हो जाती हैं और दिन-रात कुप्पे की तरह मुंह फुलाये आँखों से पाखण्ड के आंसू बहाया करती हैं अथवा घर की औरतों के साथ मिल-जुलकर रहना अपनी बेइज्जती समझती हैं।

इन चारों का दिल आईने की तरह साफ था । नहीं-नहीं, हम भूल गये, हमें दिल के साथ आईने की उपमा देना पसन्द नहीं । न मालूम लोगों ने इस उपमा को किस लिए पसन्द कर रखा है ! उपमा में उसी वस्तु का व्यवहार करना चाहिए जिसकी प्रकृति में उपमेय से किसी तरह का फर्क न पड़े, मगर आईने (शीशे) में तो यह बात पाई नहीं जाती, हरएक आईना बेऐब. साफ और बिना धब्बे के नहीं होता और वह हर एक की सूरत एक सी भी नहीं दिखाता बल्कि जिसकी जैसी सूरत होती है, उसके मुकाबले में वैसा ही बन जाता है । इसलिए आईना उन लोगों के दिल को कहना उचित है जो नीति- कुशल हैं या जिन्होंने यह बात ठान ली है कि जो जैसा करे उसके साथ वैसा ही करना चाहिए, चाहे वह अपना हो या पराया, छोटा हो या बड़ा । मगर इन चारों में यह बात न थी, ये बड़ों की झिड़की को आशीर्वाद और छोटों की ऐंठ को उनकी नादानी समझती