पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१८३

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विश्वास नहीं होता और दिल बार-बार यही कहता है कि राजा साहब मरे नहीं।

इन्द्रदेव--आखिर, तुम क्या सोचते हो और इस बात का तुम्हारे पास क्या सबूत है ? तुमने कौन-सी ऐसी बात देखी, जिससे तुम्हारे दिल को अभी तक उनके मरने का विश्वास नहीं होता?

गिरिजाकुमार--और बातों के अतिरिक्त दो बातें तो बहुत ही ज्यादा शक पैदा करती हैं। एक तो यह है कि कल दो घण्टे रात रहते मैंने हरनामसिंह और बिहारीसिंह को एक कॅगले की लाश उठाये हुए चोर दरवाजे की राह से महल के अन्दर जाते हुए देखा, फिर बहुत टोह लेने पर भी लाश का कुछ पता न लगा और न वह लाश लौटाकर महल के बाहर ही निकाली गई, तो क्या वह महल ही में हजम हो गई ? उसके बाद केवल राजा साहब की लाश बाहर निकली।

इन्द्रदेव--जरूर, यह शक करने की जगह है।

गिरिजाकुमार--इसके अतिरिक्त राजा गोपालसिंह की लाश को बाहर निकालने और जलाने में हद दर्जे की फुर्ती और जल्दबाजी की गई, यहाँ तक कि रियासत के उमरा लोगों के भी इकट्ठा होने का इन्तजार नहीं किया गया। एक साधारण आदमी के लिए भी इतनी जल्दी नहीं की जाती, वे तो राजा ही ठहरे ! हां, एक बात और भी सोचने लायक है। चिता पर नियम के विरुद्ध लाश का मुंह खोले बिना ही क्रिया कर दी गई और इस बारे में बिहारीसिंह और हरनामसिंह तथा लौंडियों ने यह बहाना किया कि "राजा साहब की सूरत देख मायारानी बहुत बेहाल हो जायेंगी, इसलिए मुर्दे का मुंह खोलने की कोई जरूरत नहीं।" और लोगों ने इन बातों पर खयाल किया हो चाहे न किया हो, मगर मेरे दिल पर तो इन वातों ने बहुत बड़ा असर किया और यही सबब है कि मुझे राजा साहब के मरने का विश्वास नहीं होता।

इन्द्रदेव--(कुछ सोचकर) शक तो तुम्हारा बहुत ठीक है, अच्छा यह बताओ कि तुम इस समय कहाँ जा रहे थे?

गिरिजाकुमार--(मेरी तरफ इशारा करके) गुरुजी के पास यही सब हाल कहने के लिए जा रहा था।

मैं--इस समय मनोरमा कहाँ है सो बताओ!

गिरिजाकुमार--जमानिया में मायारानी के पास है। मैं तुम्हारे हाथ से छूटने के बाद दारोगा और मनोरमा में कैसी निपटी इसका कुछ हाल मालूम हुआ?

गिरिजाकुरार--जी हाँ, मालूम हुआ। उस बारे में बहुत बड़ी दिल्लगी हुई जो मैं निश्चिन्ती के साथ बयान करूंगा।

इन्द्रदेव--अच्छा, यह तो बताओ कि गोपालसिंह के बारे में तुम्हारी क्या राय है और अब हम लोगों को क्या करना चाहिए?

गिरिजाकुमार--इस बारे में मैं एक अदना और नादान आदमी आपको क्या राय दे सकता हूँ ! हाँ, मुझे जो कुछ आज्ञा हो सो करने के लिए जरूर तैयार हूँ।

इतनी बातें हो ही रही थी कि सामने जमानिया की तरफ से दारोगा और