पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१९९

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बिहारीसिंह--उन्हें हम लोगों से क्या दुश्मनी थी ?

गिरिजाकुमार--कुछ भी नहीं।

बिहारीसिंह--फिर यहाँ उत्पात मचाने के लिए तुम्हें भेजा क्यों ?

गिरिजाकुमार--मुझे सिर्फ भूतनाथ का पता लगाने के लिए भेजा था, क्योंकि उन्हें भूतनाथ से बहुत ही रंज है । यद्यपि भूतनाथ ने अपना मरना मशहूर किया है मग उन्हें विश्वास है कि वह मरा नहीं और दारोगा साहब के साथ मिल-जुलकर काम क रहा है और उनकी (अर्जुनसिंह की) बर्बादी का बन्दोबस्त करता है। इसी से उन्हों मुझे आज्ञा दी थी कि दारोगा साहब के यहाँ घुस-पैठकर और कुछ दिन तक उन लोगों के साथ रहकर ठीक-ठीक पता लगाओ और बन पड़े तो उसे गिरफ्तार भी कर लो, बस!

बिहारीसिंह--भूतनाथ और अर्जुनसिंह से लड़ाई क्यों हो गई ? गिरिजाकुमार-लड़ाई तो बहुत पुरानी है, मगर इधर जब से गुरुजी ने उसका ऐयारी का बटुआ ले लिया, तब से रंज ज्यादा हो गया है।

बिहारीसिंह--(ताज्जुब से) क्या भूतनाथ का बटुआ अर्जुनसिंह ने ले लिया ?

गिरिजाकुमार--हाँ।

बिहारीसिंह--उसमें से क्या चीज निकाली?

गिरिजाकुमार--सो तो नहीं मालूम, मगर इतना गुरुजी कहते थे कि उस बटुए के बिना हमारा काम नहीं चला इसलिए उसे गिरफ्तार ही करना पड़ेगा।

बिहारीसिंह--मगर भूतनाथ के खयाल से तुम्हारे गुरुजी ने हमको क्यों तक-लीफ दी?

गिरिजाकुमार--तुम्हें उन्होंने किसी भी तरह की तकलीफ नहीं दी, बल्कि बड़े आराम के साथ कैद में रखा था, क्योंकि तुम लोगों से उन्हें किसी तरह की दुश्मनी नहीं है। उनका खयाल यही था कि बिहारीसिंह को तीन-चार दिन से ज्यादा कैद में रखने की जरूरत न पड़ेगी और इसके बीच में ही भूतनाथ का पता लग जायगा। उन्हें इस बात की भी खबर लगी थी कि भूतनाथ जमानिया में बिहारीसिंह के पास आया करता है मगर यहां आने से मुझे उसका कुछ भी पता न लगा, अब मैं एक-दो दिन में खुद ही लौट जाने वाला था। तुम अपनी बुद्धिमानी से अगर न भी छूटते तो एक-दो दिन में जरूर छोड़ दिये जाते।

"गिरिजाकुमार ने ऐसी सूरत बनाकर ये बातें कहीं कि दारोगा और बिहारी-सिंह को उसकी सच्चाई पर विश्वास हो गया। मैं पहले ही यह बयान कर चुका हूँ कि गिरिजाकुमार बातचीत के समय सूरत बनाना बहुत ही अच्छा जानता था । अब गिरिजा-कुमार और बिहारीसिंह की बातें सुन दारोगा ने कहा-"शिवशंकर, मालूम तो होता है कि तुम जो कुछ कहते हो वह सच ही है, परन्तु ऐयारों की बातों पर विश्वास करना जरा मुश्किल है, फिर भी तुम अच्छे और साफ दिल के मालूम होते हो।"

गिरिजाकुमार--आप चाहे जो खयाल करें, मगर मैं तो यही समझता हूँ कि आप लोगों से मुझे झूठ बोलने की जरूरत ही क्या है ? न मेरे गुरुजी को आप लोगों से दुश्मनी है न मुझी को; हाँ अगर यह मालूम हो जायगा कि हमारे मुकाबले में आप लोग