की सी हालत में मेरे घर आया और उसने मेरा लड़का समझ कर अपने हाथ से खुद अपने लड़के का खून कर दिया जिसका रंज इस जिन्दगी में उसके दिल से नहीं निकल सकता और जिसका खुलासा हाल वह स्वयं अपनी जीवनी में बयान करेगा। इसी के थोड़े दिन बाद भूतनाथ की बदौलत मैं दारोगा के कब्जे में जा फंसा ।
"जब तक मैं स्वतन्त्र रहा मुझे गिरिजाकुमार का हाल कुछ भी मालूम न हुआ,जब मैं पराधीन होकर कैदखाने में गया और वहाँ गिरिजाकुमार से जिसे, भूतनाथ ने दारोगा के सुपुर्द कर दिया था, मुलाकात हुई तब गिरिजाकुमार की जुबानी सब हाल मालूम हुआ।
"भूतनाथ के कब्जे में पड़ जाने के बाद जब गिरिजाकुमार होश में आया तो उसने अपने को एक पत्थर के खंभे के साथ बँधा हुआ पाया जो किसी सुन्दर सजे हुए कमरे के बाहरी दालान में था। वह चौकन्ना होकर चारों तरफ देखने और गौर करने लगा मगर इस बात का निश्चय न कर सका कि यह मकान किसका है, हाँ शक होता था कि यह दारोगा का मकान होगा, क्योंकि अपने सामने भूतनाथ के साथ-ही-साथ बिहारीसिंह और दारोगा साहब को भी बैठे हुए देखा।
गिरिजाकुमार दारोगा, बिहारीसिंह और भूतनाथ में देर तक तरह-तरह की बातें होती रहीं और मिरिजाकुमार ने भी बातों की उलझन में उन्हें ऐसा फंसाया कि किसी तरह असल भेद का वे लोग पता न लगा सके, मगर फिर भी गिरिजाकुमार को उनके हाथों छुट्टी न मिली और वह तिलिस्म के अन्दर वाले कैदखाने में लूंस दिया गया, हाँ, उसे इस बात का विश्वास हो गया कि वास्तव में राजा गोपालसिंह मरे नहीं, बल्कि कैद कर लिए गए हैं।
"राजा गोपालसिंह के जीते रहने का हाल यद्यपि गिरिजाकुमार को मालूम हो गया मगर इसका नतीजा कुछ भी न निकला क्योंकि इस बात का पता लगाने के साथ ही ह गिरफ्तार हो गया और यह हाल किसी से भी बयान न कर सका । अगर हम लोगों में से किसी को भी मालूम हो जाता कि वास्तव में राजा गोपालसिंह जीते हैं और कैद में हैं तो हम लोग उन्हें किसी-न-किसी तरह जरूर छुड़ा ही लेते, मगर अफसोस !
"बहुत दिनों तक खोजने और पता लगाने पर भी जब गिरिजाकुमार का कुछ हाल मालूम न हुआ तब लाचार होकर मैं इन्द्रदेव के पास गया और सब हाल वयान करने के बाद मैंने इनसे सलाह पूछी कि अब क्या करना चाहिए । बहुत गौर करने के बाद इन्द्रदेव ने कहा कि मेरा दिल यही कहता है कि गिरिजाकुमार गिरफ्तार हो गया और इस समय दारोगा के कब्जे में है। इसका पता इस तरह लग सकता है कि तुम किसी तरह दारोगा को गिरफ्तार करके ले आओ और उसकी सूरत बनकर पाँच-दस दिन उसके मकान में रहो । इसी बीच में उसके नौकरों की जुबानी कुछ-न-कुछ हाल गिरिजाकुमार का जरूर मालूम हो जायगा, मगर इसमें कुछ शक नहीं कि दारोगा को गिरफ्तार करना जरा मुश्किल है।
"इन्द्रदेव की राय मुझे बहुत पसन्द आई और मैं दारोगा को गिरफ्तार करने की फिक्र में पड़ा । इन्द्रदेव से बिदा होकर मैं अर्जुनसिंह के घर गया और जो कुछ सलाह