पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/२३८

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नहीं है । जो हो भाषा के विषय में हमारा वक्तव्य यही है कि वह सरल हो और नागरी वाणी में हो, क्योंकि जिस भाषा के अक्षर होते हैं, उनका खिंचाव उन्हीं मूल भाषाओं की ओर होता है जिससे उनकी उत्पत्ति हुई है।

भाषा के सिवाय दूसरी बात मुझे भाव के विषय में कहनी है । मेरे कई मित्र आक्षेप करते है कि मुझे देश-हितपूर्ण और धर्मभावमय कोई ग्रन्थ लिखना उचित था, जिससे मेरी प्रसरणशील पुस्तकों के कारण समाज का बहुत-कुछ उपकार व सुधार हो जाता। बात बहुत ठीक है, परन्तु एक अप्रसिद्ध ग्रंथकार की पुस्तक को कौन पढ़ता? यदि मैं चन्द्रकान्ता और सन्तति को न लिखकर अपने मित्रों से भी दो-चार बातें हिन्दी के विषय में कहना चाहता तो कदाचित् वे भी सुनना पसन्द नहीं करते। गम्भीर विषय के लिए जैसे एक विशेष भाषा का प्रयोजन होता है वैसे ही विशेष पुरुष का भी । भारतवर्ष में विशेषता की अधिकता न देखकर मैंने साधारण भाषा में साधारण बातें लिखना ही आवश्यक समझा । संसार में ऐसे भी लोग हुए होंगे जिन्होंने सरल और भावमय एक ही पुस्तक लिखकर लोगों का चित्त अपनी ओर खींच लिया हो पर वैसा कठिन काम मेरे ऐसे के करने के योग्य न था । तथापि पात्रों की चाल-चलन दिखाने में जहाँ तक हो सका इसका ध्यान रखा गया है। सब पात्र यथासमय सन्ध्या-तर्पण करते हैं और अवसर पड़ने पर पूजा प्रकार भी वीरेन्द्रसिंह आदि के वर्णन में जगह-जगह दिखाई देता है ।

कुछ दिनों की बात है कि मेरे कई मित्रों ने संवाद-पत्रों में इस विषय का आंदोलन उठाया था कि इनके कथानक सम्भव है या असम्भव । मैं नहीं समझता कि यह बात क्यों बनाई और बढ़ाई गई ! जिस प्रकार पंचतन्त्र-हितोपदेश आदि ग्रन्थ बालकों की शिक्षा के लिए लिखे गये, उसी प्रकार यह लोगों के मनोविनोद के लिए । पर यह सम्भव है या असम्भव इस विषय में कोई यह समझे कि 'चन्द्रकान्ता' और 'वीरेन्द्रसिंह' इत्यादि पात्र और उनके विवित्र स्थानादि सब ऐतिहासिक है तो बड़ी भारी भूल है । कल्पना का मैदान विस्तृत है और उसका यह एक छोटा-सा नमूना है। रही सम्भव असंभव की बात अर्थात् कौन-सी बात हो सकती है और कौन नहीं हो सकती ! इसका विचार प्रत्येक मनुष्य की योग्यता और देश काल पात्र से सम्बन्ध रखता है । कभी ऐसा समय था कि यहां के आकाश में विमान उड़ते थे, एक एक वीर पुरुष के तीरों में यह सामर्थ्य थी कि क्षणमात्र में सहस्रों मनुष्यों का संहार हो जाता था, पर अब वह बातें खाली पौराणिक कथा समझी जाती है पर दो सौ वर्ष पहले जो बातें असम्भव थीं आजकल विज्ञान के सहारे वे सब सम्भव हो रही हैं । रेल, तार, बिजली आदि के कार्यो को पहले कौन मान सकता था? और फिर यह भी है कि साधारण लोगों की दृष्टि में जो असम्भव है कवियों की दृष्टि में भी वह असम्भव ही रहे यह कोई नियम की बात नहीं है । संस्कृत साहित्य के सर्वोत्तम उपन्यास 'कादम्बरी' की नायिका युवती की युवती ही रही पर उसके नायक के तीन जन्म हो गये,तथापि कोई बुद्धिमान पुरुष इसको दोषावह न समझकर गुणधायक ही समझेगा। चन्द्र- कान्ता में जो अद्भुत बातें लिखी गई हैं, वे इसलिए नहीं कि लोग उनकी सचाई-झुठाई की परीक्षा करें, प्रत्युत इसलिए कि उसका पाठ कुतूहल वर्द्धक हो ।

एक समय था कि लोग 'सिंहासन' 'बत्तीसी' 'वैतालपचीसी' आदि कहानियों को