पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/२८

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सुरेन्द्रसिंह-ताज्जुब की बात है कि तुम दोनों भाई यहाँ आकर भी अपने को छिपाये रहे !

इन्द्रजीतसिंह—(हाथ जोड़कर) मैं यहाँ हाजिर होकर पहले ही अर्ज कर चुका था कि "हम लोगों का भेद जानने के लिए उद्योग न किया जाये, हम लोग मौका पाकर स्वयं अपने को प्रकट कर देंगे।" इसके अतिरिक्त तिलिस्मी नियमों के अनुसार तब तक हम दोनों भाई प्रकट नहीं हो सकते थे, जब तक कि अपना सारा काम पूरा करके इसी तिलिस्मी चबूतरे की राह से तिलिस्म के बाहर नहीं निकल आते। साथ ही इसके हम लोगों की यह भी इच्छा थी कि जब तक निश्चिन्त होकर खुले तौर पर यहाँ न आ जायें,तब तक कैदियों के मुकदमे का फैसला न होने पाये, क्योंकि इस तिलिस्म के अन्दर जाने के बाद हम लोगों को बहुत से नए-नए भेद मालूम हुए हैं जो(नकाबपोशों की तरफ इशारा करके)इन लोगों से सम्बन्ध रखते हैं, और जिनका आपसे अर्ज करना बहुत जरूरी था।

सुरेन्द्रसिंह-(मुस्कराते हुए और नकाबपोशों की तरफ देखकर) अब तो इन लोगों को भी अपने चेहरों से नकाबें उतार देनी चाहिए । हम समझते हैं इस समय इन लोगों का चेहरा साफ होगा।

कुंअर इन्द्रजीतसिंह का इशारा पाकर उन नकाबपोशों ने भी अपने-अपने चेहरे से नकाबें हटा दी, और खड़े होकर अदब के साथ महाराज को सलाम किया । ये नकाबपोश गिनती में पांच थे और इन्हीं पांचों में इस समय वे दोनों सूरतें भी दिखाई पड़ीं,जो यहाँ दरबार में पहले दिखाई पड़ चुकी थी, या जिन्हें देखकर दारोगा और बेगम के छक्के

अब सबका ध्यान उन पांचों नकाबपोशों की तरफ खिंच गया, हाल जानने के लिए लोग पहले ही से बेचैन हो रहे थे, क्योंकि इन्होंने कैदियों के मामले,में कुछ विचित्र ढंग की कैफियत और उलझन पैदा कर दी थी। यद्यपि कह सकते हैं कि यहाँ पर इन पाँचों को पहचानने वाला कोई न था, मगर भूतनाथ और राजा गोपालसिंह बड़े गौर से उनकी तरफ देखकर अपने हाफजे (स्मरणशक्ति)पर जोर दे रहे थे, और उम्मीद करते थे कि इन्हें हम पहचान लेंगे।

सुरेन्द्रसिंह- (गोपालसिंह की तरफ देखकर)केवल हम लोग नहीं बल्कि हजारों आदमी इनका हाल जानने के लिए बेताब हो रहे हैं, अतः ऐसा करना चाहिए कि एक साथ ही इनका हाल मालूम हो जाये ।

गोपालसिंह-मेरी भी यही राय है ।

एक नकाबपोश-कैदियों के सामने ही हम लोगों का किस्सा सुना जाये तो ठीक है, क्योंकि ऐसा होने ही से महाराज का विचार पूरा होगा। इसके अतिरिक्त हम लोगों के किस्से में वही कैदी हामी भरेंगे, और कई अधूरी बातों को पूरा करके महाराज का शक दूर करेंगे, जिन्हें हम लोग भी नहीं जानते, और जिनके लिए महाराज भी छूट गए थे। निका असल उत्सुक होंगे।

इन्द्रजीतसिंह-(सुरेन्द्रसिंह से) बेशक ऐसा ही है । यद्यपि हम दोनों भाई इन लोगों का किस्सा सुन चुके हैं, मगर कई भेदों का पता नहीं लगा, जिनके जाने बिना जी