पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
35
 

5

महाराज की आज्ञानुसार कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह के विवाह की तैयारी बड़ी धूमधाम से हो रही है। यहां से चुनार तक की सड़कें दोनों तरफ जाफरी वाली टट्टियों से सजाई हैं, जिन पर रोशनी की जायेगी और जिनके बीच में थोड़ी-थोड़ी दूर पर बड़े फाटक बने हुए हैं और उन पर नौबतखाने का इन्तजाम किया गया है। टट्टियों के दोनों तरफ बाजार बसाया जायेगा, जिसकी तैयारी कारिन्दे लोग बड़ी खूबी और मुस्तैदी के साथ कर रहे हैं। इसी तरह और भी तरह-तरह के तमाशों का इन्तजाम बीच-बीच में हो रहा है, जिसके सबब से बहुत ज्यादा भीड़-भाड़ होने की उम्मीद है और अभी से तमाशबीनों का जमावड़ा भी हो रहा है। रोशनी के साथ-साथ आतिशबाजी के इन्तजाम में भी बड़ी सरगर्मी दिखाई जा रही है, कोशिश हो रही है कि उम्दा से उम्दा तथा अनूठी आतिशबाजी का तमाशा लोगों को दिखाया जाये। इसी तरह और भी कई तरह के खेल-तमाशे और नाच इत्यादि का बन्दोबस्त हो रहा है, मगर इस समय हम इन सब बातों से कोई मतलब नहीं है क्योंकि हम अपने पाठकों को उस तिलिस्मी मकान की तरफ ले चलना चाहते हैं, जहां भूतनाथ और देवीसिंह ने नकाबपोशों के फेर में पड़कर शर्मिन्दगी उठाई थी और जहाँ इस समय दोनों कुमार अपने दादा, पिता तथा और सब आपस वालों को तिलिस्मी तमाशा दिखाने के लिए ले जा रहे हैं।

सुबह का सुहावना समय है और ठंडी हवा चल रही है। जंगली फूलों की खुशबू से मस्त सुन्दर-सुन्दर रंग-बिरंगी खूबसूरत चिड़ियाएं हमारे सर्वगुण-सम्पन्न मुसाफिरों को मुबारकबाद दे रही हैं, जो तिलिस्म की सैर करने की नीयत से मीठी-मीठी बातें करते हुए जा रहे हैं।

घोड़े पर सवार महाराज सुरेन्द्रसिंह, राजा वीरेन्द्रसिंह, जीतसिंह, गोपालसिंह, इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह तथा पैदल तेजसिंह, देवीसिंह, भूतनाथ, पंडित बद्रीनाथ, रामनारायण, पन्नालाल वगैरह अपने ऐयार लोग जा रहे थे। तिलिस्म के अन्दर मिले हुए कैदी अर्थात् नकाबपोश लोग तथा भैरोंसिंह और तारासिंह इस समय साथ न थे।इस समय देवीसिंह से ज्यादा भूतनाथ का कलेजा उछल रहा था और वह अपनी स्त्री का असली भेद जानने के लिए बेताब हो रहा है। जब से उसे इस बात का पता लगा कि वे दोनों सरदार नकाबपोश यही दोनों कुमार हैं तथा उस विचित्र मकान के मालिक भी यही हैं, तब से उसके दिल का खुटका कुछ कम तो हो गया, मगर खुलासा हाल जानने और पूछने का मौका न मिलने के सबब उसकी बेचैनी दूर नहीं हुई थी। वह यह भी जानना चाहता था कि अब उसकी स्त्री तथा लड़का हरनामसिंह किस फिक्र में हैं। इस समय जब वह फिर उसी ठिकाने जा रहा था, जहाँ अपनी स्त्री की बदौलत गिरफ्तार होकर अपने लड़के का विचित्र हाल देखा था, तब उसका दिल और बेचैन हो उठा था मगर साथ ही इसके उसे इस बात की भी उम्मीद हो रही थी कि अब उसे उसकी स्त्री का हाल मालूम हो जायेगा या कुछ पूछने का मौका ही मिलेगा।