पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/४०

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घाटी में पहुंचे थे वह यही स्थान है ।' इसी चबूतरे के अन्दर से हम लोग बाहर हुए थे ।उस 'रिक्तगंथ' की बदौलत हम दोनों भाई यहाँ तक तो पहुँच गए मगर उसके बाद इस चबूतरे ले तिलिस्म को खोल न सके, हाँ इतना जरूर है कि उस'रिक्तगंथ' की बदौलत इस चबूतरे में से (जिस पर एक पुतली बैठी हुई थी उसकी तरफ इशारा करके) एक दूसरी किताब हाथ लगी जिसकी बदौलत हम लोगों ने उस चबूतरे वाले तिलिस्म को खोला और उसी राह से आपकी सेवा में जा पहुंचे।

"आप सुन चुके हैं कि जब हम दोनों भाई राजा गोपालसिंह को मायारानी की कैद से छुड़ा कर जमानिया के खास बाग वाले देवमन्दिर में गये थे तब वहाँ पहले आनन्द-सिंह तिलिस्म के फन्दे में फंस गये थे, उन्हें छुड़ाने के लिए जब मैं भी उसी गड़हे या कुएँ में कूद पड़ा तो चलता-चलता एक दूसरे बाग में पहुँचा जिसके बीचोंबीच में एक मन्दिर था। उस मन्दिर वाले तिलिस्म को जब मैंने तोड़ा तो वहाँ एक पुतली के अन्दर कोई चमकती हुई चीज मुझे मिली।"2

वीरेन्द्रसिंह–हाँ, हमें याद है, उस मूरत को तुमने उखाड़ कर किसी कोठरी के अन्दर फेंक दिया था और वह फूट कर चूने की कली की तरह हो गई थी। उसी पेट में से...

इन्द्रजीतसिंह-जी हाँ।

सुरेन्द्रसिंह-तो वह चमकती हुई चीज क्या थी और वह कहाँ है ? इन्द्रजीतसिंह-वह हीरे की बनी हुई एक चाबी थी जो अभी तक मेरे पास मौजूद है, (जेब में से निकाल कर और महाराज को दिखा कर) देखिये, यही ताली इस पुतली के पेट में लगती है।

सभी ने उस चाबी को गौर से देखा और इन्द्रजीतसिंह ने सभी के देखते-देखते उस चबूतरे पर बैठी हुई पुतली की नाभि में वह ताली लगाई। उसका पेट छोटी आलमारी के पल्ले की तरह खुल गया।

इन्द्रजीतसिंह -बस इसी में से वह किताब मेरे हाथ लगी जिसकी बदौलत वह चबूतरे वाला तिलिस्म खोला।

सुरेन्द्रसिंह-अब वह किताब कहाँ है ?

इन्द्रजीतसिंह-आनन्दसिंह के पास मौजूद है ।

इतना कहकर इन्द्रजीतसिंह ने आनन्दसिंह की तरफ देखा और उन्होंने एक छोटी-सी किताब, जिसके अक्षर बहुत बारीक थे, महाराज के हाथ में दे दी।यह किताब भोजपत्र की थी जिसे महाराज ने बड़े गौर से देखा और दो-तीन जगहों से कुछ पढ़ कर आनन्दसिंह के हाथ में देते हुए कहा, "इसे निश्चिन्ती में एक दफा पढ़ेंगे।"

इन्द्रजीतसिंह—यह पुतलीवाला चबूतरा उस तिलिस्म में घुसने का दरवाजा है ।

इतना कहकर इन्द्रजीतसिंह ने उस पुतली के पेट में (जो खुल गया था)


1. देखिए चन्द्रकान्ता सन्तति, बीसवाँ भाग, नौवां बयान

2,देखिए " "दसवाँ भाग, पहला बयान ।