पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
46
 

सुरेन्द्रसिंह --- बेशक यह खेल मुझे बहुत अच्छा माल्म हुआ। परन्तु अब इन तस्वीरों को ठीक अपने ठिकाने पर पहुँचाकर छोड़ देना चाहिए।

"बहुत अच्छा" कहकर इन्द्रजीतसिंह आगे बढ़ गये और पुनः तिलिस्मी खंजर उसी सूराख में डाल दिया जिससे उसी तरह दीवार चमकने और तस्वीरें चलने लगीं। ताज्जुब के साथ लोग उसका तमाशा देखते रहे । कई घण्टे के बाद जब तस्वीरों की यह लीला समाप्त हुई और एक विचित्र ढंग के खटके की आवाज आई, तब इन्द्रजीतसिंह ने दीवार के अन्दर से तिलिस्मी खंजर निकाल लिया और दीवार का चमकना भी बन्द हो गया।

इस तमाशे से छुट्टी पाकर महाराज सुरेन्द्र सिंह ने इन्द्रजीतसिंह की तरफ देखा और कहा, "अब हम लोगों को इस दीवार के अन्दर ले चलो।"

इन्द्रजीतसिंह --- जो आज्ञा, पहले बाहर से जांच कर आप अन्दाजा कर लें कि यह दीवार कितनी मोटी है।

सुरेन्द्रसिंह --- इसका अन्दाज हमें मिल चुका है, दूसरे कमरे में जाने के लिए इसी दीवार में जो दरवाजा है उसकी मोटाई से पता लग जाता है जिस पर हमने गौर किया है।

इन्द्रजीतसिंह --- अच्छा तो अब एक दफे आप पुनः उसी दूसरे कमरे में चलें क्यों कि इस दीवार के अन्दर जाने का रास्ता उधर ही से है।

इन्द्रजीतसिंह की बात सुनकर महाराज सुरेन्द्रसिंह तथा और सब लोग उठ खड़े हुए और कुमार के साथ-साथ पुनः उसी कमरे में गए जिसमें दो चबूतरे बने हुए थे।

इस कमरे में तस्वीर वाले कमरे की तरफ जो दीवार थी, उसमें एक आलमारी का निशान दिखाई दे रहा था और उसके बीचोंबीच में लोहे की एक खूटी गड़ी हुई थी जिसे इन्द्रजीतसिंह ने उमेठना शुरू किया। तीस-पैंतीस दफे उमेठ कर अलग हो गए और दूर खड़े होकर उस निशान की तरफ देखने लगे । थोड़ी देर बाद वह आलमारी हिलती हुई मालूम पड़ी और फिर यकायक उसके दोनों पल्ले दरवाजे की तरह खुल गए। साथ ही उसके अन्दर से दो औरतें निकलती हुई दिखाई पड़ी जिनमें एक तो भूतनाथ की स्त्री थी और दूसरी देवीसिंह की स्त्री चम्पा । दोनों औरतों पर निगाह पड़ते ही भूतनाथ और देवीसिंह चमक उठे और उनके ताज्जुब की कोई हद न रही, साथ ही इसके दोनों ऐयारों को क्रोध भी चढ़ आया और लाल-लाल आँखें करके उन औरतों की तरफ देखने लगे । उन्हीं के साथ-ही-साथ और लोगों ने भी ताज्जुब के साथ उन औरतों को देखा।

इस समय उन दोनों औरतों का चेहरा नकाब से खाली था, मगर भूतनाथ और देवीसिंह के चेहरे पर निगाह पड़ते ही उन दोनों ने आँचल से अपना चेहरा छिपा लिया और पलट कर पुनः उसी आलमारी के अन्दर जा लोगों की निगाह से गायब हो गईं। उनकी इस करतूत ने भूतनाथ और देवीसिंह के क्रोध को और भी बढ़ा दिया।