पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/६

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स्त्री-तो यह कौन कहता है कि मैं तुम्हारी स्त्री हूँ ?

मैं-अभी इसके पहले तूने क्या कहा था ?

स्त्री-(हँस कर) मालूम होता है कि तुम अपने होश में नहीं हो।

इतना सुनते ही मुझे क्रोध चढ़ आया और मैं अपनी हथकड़ी-बेड़ी तोड़ने का उद्योग करने लगा । यह हाल देखकर उस औरत को भी क्रोध आ गया और उसने अपनी एक सखी या लौंडी की तरफ देखकर कुछ इशारा किया। वह लौंडी इशारा पाते ही उठी और उसी जगह आले पर से एक बोतल उठा लाई जिसमें किसी प्रकार का अर्क था । उस से चुल्लू भर उसने दो-तीन छींटे मेरे मुंह पर दिये जिस से मैं बेहोश हो गया और मुझे तनो-बदन की सुध न रही। मैं नहीं बता सकता कि इसके बाद कितने घण्टे तक मैं उसके कब्जे में रहा, परन्तु जब होश में आया तो मैंने अपने को जंगल में एक पेड़ के नीचे पाया। घण्टों तक ताज्जुब के साथ चारों तरफ देखता रहा, इसके बाद एक चश्मे के किनारे जाकर हाथ-मुँह धोने के बाद इस तरफ रवाना हुआ। बस, यही सबब था कि मुझे हाजिर होने में देर हो गई।

भूतनाथ की बातें सुनकर सभी को ताज्जुब हुआ, मगर वे दोनों नकाबपोश एक दम खिलखिलाकर हँस पड़े और उनमें से एक ने भूतनाथ की तरफ देखकर कहा-

नकाबपोश-भूतनाथ, निःसन्देह तुम धोखे में पड़ गये । उस औरत ने जो कुछ तुमसे कहा, उसमें शायद ही दो तीन बातें सच हों। भूतनाथ–(ताज्जुब से) सो क्या ? उसने कौन सी बातें सच-सच कही थीं और कौन सी नकाबपोश-सो मैं नहीं कह सकता मगर आशा है कि शीघ्र ही तुम्हें सच-झूठ का पता लग जायगा।

भूतनाथ ने बहुत-कुछ चाहा मगर नकाबपोश ने उसके मतलब की कोई बात न कही । थोड़ी देर तक इधर-उधर की बातें करके नकाबपोश बिदा हुए और जाते समय एक सवाल के जवाब में कह गये कि "आप लोग दो दिन और सब्र करें, इसके बाद कुंअर उन्हें इस बातों के जानने का बड़ा शौक है।"


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रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी है । महाराज सुरेन्द्रसिंह अपने कमरे में पलंग पर लेते हुए जीतसिंग से कुछ धिरे-धीरे बाते कर रहें हैं जो चारपाई के नीचे उनके पास ही बैठे है।केवल जीतसिंग ही नहीं बल्कि उनके पास वे दोनो नकापपोश भी बैठे हुए है जो रोज दरबार में आकर लोगों को ताज्जुब में डाला करते है और जिनका नाम है रामसिंह और लक्ष्मणसिंह है । हम नहीं कह सकते कि ये लोग कब से इस कमरे में बैठे