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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/८७

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बोले, "इनके मिलने की मुझे हद से ज्यादा खुशी हुई, बहुत देर से मैं चाहता था । इनके विषय में कुछ पूर्वी !"

महाराज--मालूम होता है इन्हें भी दारोगा ही ने अपना शिकार बनाया था?

भरतसिंह--जी हां, आज्ञा होने पर मैं अपना हाल बयान करूंगा।

इन्द्रजीतसिंह--(महाराज से) तिलिस्म के अन्दर मुझे पांच कैदी मिले थे जिनमें से तीन तो यही अर्जुनसिंह, भरतसिंह और दलीपशाह हैं। इसके अतिरिक्त दे और हैं जो यहां बुलाये नही गये।दारोगा, मायारानी तथा उसके पक्ष वालों के सम्बन्ध में इन पांचों ही का किस्सा सुनने योग्य है। जब कैदियों का मुकदमा होगा, तब आप देखियेगा कि इन लोगों की सूरत देखकर कैदियों की क्या हालत होती है ।

महाराज--वे दोनों कहां हैं ?

इन्द्रजीतसिंह--इस समय यहां मौजूद नहीं हैं, छुट्टी लेकर अपने घर की अवस्था देखने गये हैं, दो-चार दिन में आ जायेंगे । भूतनाथ—-(इन्द्रदेव से) यदि आज्ञा हो तो मैं भी कुछ पूछू ?

इन्द्रदेव--आप जो कुछ पूछेगे उसे मैं खूब जानता हूँ । मगर खैर, पूछिये ।

भूतनाथ--कमला की मां आप लोगों को कहाँ से और क्योंकर मिली?

इन्द्रदेव--यह तो उसी की जुबानी सुनने में ठीक होगा । जब वह अपना किस्सा बयान करेगी, कोई बात छिपी न रह जायगी ।

भूतनाथ--और नानक की मां तथा देवीसिंहजी की स्त्री के विषय में कब मालूम होगा?

इन्द्रदेव--वह भी उसी समय मालूम हो जायगा । मगर भूतनाथ, (मुस्कराकर)तुमने और देवीसिंह ने नकाबपोशों का पीछा करके व्यर्थ खटका और तरवुद खरीद लिया। यदि उनका पीछा न करते और पीछे से तुम दोनों को मालूम होता कि तुम्हारी स्त्रियाँ भी इस काम में शरीक हुई थीं, तो तुम दोनों को एक प्रकार की प्रसन्नता होती।प्रसन्नता तो अब भी होगी, मगर खटके और तरदुद से कुछ खून सुखा लेने के बाद !

इतना कहकर इन्द्रदेव हंस पड़े और इसके बाद सभी के चेहरों पर मुस्कराहट दिखाई देने लगी।

तेजसिंह--(मुस्कराते हुए देवीसिंह से) अब तो आपको भी मालूम हो ही गया होगा कि आपका लड़का तारासिंह कई विचित्र भेदों को आपसे क्यों छिपाता था ?

देवीसिंह--जी हाँ, सब कुछ मालूम हो गया। जब अपने को प्रकट करने के पहले ही दोनों कुमारों ने भैरोंसिंह और तारासिंह को अपना साथी बना लिया, तो हम लोग जहां तक आश्चर्य में डाले जाते, थोड़ा था ! देवीसिंह की बात सुनकर पुनः सभी ने मुस्करा दिया और अब दरबार का रंग-ढंग ही कुछ दूसरा हो गया अर्थात् तरदुद के बदले सभी के चेहरे पर हंसी और मुस्कराहट दिखाई देने लगी।

तेजसिंह--(भूतनाथ से) भूतनाथ, आज तुम्हारे लिए बड़ी खुशी का दिन है, क्योंकि और बातों के अतिरिक्त तुम्हारी नेक और सती स्त्री भी तुम्हें मिल गई।जिसे