२२
निराला
आई॰ सी॰ एस्॰ का पत्र आया है कि आप अगर मंज़ूर करें, आपको अपना सर्वस्व—तीन हज़ार मासिक—प्रेम की पर्मानेंट शिक्षा के लिये देकर मिस्ट्रेस बनाने की प्रार्थना करता हूँ। अब तो आया समझ में?"
"तो क्या तुम्हारे पिताजी राज़ी हो गए?" लीला ने जोत से पूछा।
"ख़ूब कही!" जोत बोली—"जहाँ आई॰ सी॰ एस्॰ वर मिलता हो, वहाँ पिताजी ख़ुद ब्याह करने को तैयार हो जायें।"
कमरा खिलखिलाहट से गूँज उठा।
"तुम लोग भई जाओ, माफ़ करो, मुझे समय नहीं है।"
"नहीं महाशयाजी, आप तो फ़र्स्ट क्लास लें, और हम लोग वहीं पैर रगड़ते रहें, ऐसा नहीं होने को। आपको चलना होगा, कपड़े बदलिए।"
जोत लीला को प्यार करती है, सम्मान भी देती है। लीला भी जानती है, जोत की खुली ज़बान में हृदय की क़ीमती बहुत-सी चीज़ें खुली रहती हैं। इसलिए उसका प्रस्ताव मंज़ूर कर, कपड़े बदलकर साथ चल दी।
३
तीन बजे से पहले ही लीला का क्लास खत्म हो जाता है। वहाँ से वह तअल्लुक़दार साहब की पत्नी को पढ़ाने के लिये भैंसाकुंड जाया करती है। रोज़ बहुत चलना पड़ता। किसी तरह साइकिल ख़रीद सकती है। पर सीखने की लाज कि मैदान में मर्दों के सामने बेहयाई होगी, कौन पकड़कर चलाएगा, गिरूँगी तो लोग हँसेंगे आदि-आदि—बाधक होती है। इसलिये चलने की काफ़ी मेहनत गवारा करती है।
भैंसाकुंड से साढ़े पाँच-छ के क़रीब लौटती हुई कई रोज़ से देखती है—दो मुसलमान उसका पीछा करते हैं। वे आपस में न जाने क्या बातचीत करते हैं। कभी-कभी पास आ जाते हैं। हृदय धड़कने लगता है। पर वह जल्द-जल्द चली आती है। ज्यों-ज्यों तेज़ चलती है, वे