पृष्ठ:चतुरी चमार.djvu/२९

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निराला



बड़ी-बड़ी आँखें दीख रही हैं। साहब ने दुख के करुण चित्र का सौंदर्य देख कर पूछा—"आपका शुभ नाम?"

"मुझे लीला कहते हैं।" निगाह झुकाती हुई लीला बोली।

"आप ही को अपनी सँभाल करनी पड़ती है; आप—आप शादीशुदा तो है?"

"जी नहीं, मैं आइसाबेला थाबर्न कालेज की छात्रा हूँ।"

"किस क्लास में आप हैं?"

"एम॰ ए॰ में।" धीमे स्वर से कहकर समझ की लाजभरी पलकें झुका लीं।

कुछ आग्रह से साहब ने पूछा—"आप ब्राह्मण हैं?"

"जी नहीं, कायस्थ हूँ।"

"यहाँ कहाँ रहती हैं?"

"माडेल हौसेज़ में।"

साहब कुछ चौंके। पूछा—"आपके वहाँ कोई ज्योतिर्मयी रहती हैं? आपके कालेज की बी॰ ए॰ पहले साल की छात्रा हैं।"

लीला भी चौंकी। कुछ हिम्मत हुई। लजाकर पूछा—"जनाब का नाम?"

"मुझे श्यामलाल कहते हैं।—अरे ए, कार तो ले आने को कह दे।"

लीला का संकोच बहुत कुछ दूर हो गया। बोली—"हाँ, आपका ज़िक्र मैंने सुना है।"

साहब की उत्सुकता बढ़ गई। बड़ी उतावली से "कहाँ सुनी?" पूछा।

लीला मुस्कराई। कहा—"जोत की सखियों से, उसकी एक चिट्ठी चुरा गई थी।"

साहब उतरे स्वरों में बोले—"उनका कोई जवाब अभी नहीं मिला। उनके पिताजी मेरे वलायत रहते समय मेरे पिताजी से मिले थे। मेरे