पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१४०

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दूसरा हिस्सा तिलो० } में थल उनके पास गई थी पर वे किसी तरह नहीं मानते, तुमसे बात ही उपादे रज हैं, मुझ पर भी बहुत बिगड़ते थे, अगर मैं तुरन्त न चली ग्नात तो बेइज्जती के साथ निकलवा देते, अब में उनके पास कभी न जाऊँग । माधवी० | और जो कुछ किस्मत में है भोगी ! अच्छा अन तो सभ की ग्रामदरपर इसी सुरंग से होगी, तो फिौरी को वहा से निकाल किसी दूसरी जगह रखना चाहिये १ तिलोत्तम ० | उस मुरग से बढ़ कर कौन ऐनी जगह है । उसे रक्सौगी, दीवान साहब का भी तो उर है ? थोडी देर तक इन दोनों में बातचीत होती रही, इसके बाद इन्द्र जीतसिंह के सो कर उटने की खबर प्राई । शाम भी हो चुकी थी, माधवी उठ कर उनके पास गई और तिलोत्तमा पानी वाले सुरक्ष को बन्द करने की पिक में लगी । पाठ, इस जगह मानना बडा ही गोलमाल हो गया । तिलोत्तमा ने चालावी गे वरिन्द्रसिंह के ऐयारों को कार्रवाई देख ली । माधवी ग्री तिलोत्तमा की तिचीत मे श्रायह भी जान ही गये है कि वैचारी किशोरी उसी सुर में ईद की गई है जिसको ताला चपला ने बनाई शो या जिस दुर्ग की राह चला और कु अर इन्द्रजंतसिंह ने माधवी के पीछे जाकर यह मालूम कर लिया है कि वह कहाँ जाती है। उस सुर ग की दूगरी ती ली तो मौजूद है। थो, विशोरी को चुना पला के लिए कोई बी बात न थी प्ररर तिलोत्तमा होशियार होकर उसे चाने जाने वाली रह 'प्रथा पानी वाली सुरङ्ग को जिसमें इन्द्रजेत्य गये थे और म्यागे जलमय देख कर लौट आए थे, पत्थर * गनभूती के साथ बन्द न र देती । कू'अर इन्द्र मम है या था कि हमारे ऐयार लोग इसी राह । करते हैं, अब उन्होंने अपनी आँखों से यह भी है कि