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तात्पर्य्य कि---यह अधिक सभव है कि नन्दों और मौर्य्यो का कोई रक्त-सम्बन्ध न था। Maxmuller भी लिखते है--"The statement of Wilford that mourya meant in Sanskrit the offspring of a barber and Sudra woman has never been proved.”

मुरा शूद्रा तक ही न रही, एक नापित भी आ गया । मौर्य शब्द की व्याख्या करने जाकर कैसा भ्रम फैलाया गया है। मुरा से मोर और मौरेय बन सकता है, न कि मौर्य्य। कुछ लोगो का अनुमान है कि शुद्ध शब्द मोरिय है, उससे संस्कृत शब्द मौर्य्य बना है; परन्तु, यह बात ठीक नहीं, क्योकि अशोक के कुछ ही समय बाद के पतञ्जलि ने स्पष्ट मौर्य्य शब्द का उल्लेख किया है -“मौर्य्य हिरण्याथिभिरर्चा प्रकल्पिता " ( भाष्य ५-३-९९ ) इसीलिए मौर्य्य शब्द अपने शुद्ध रूप में संस्कृत का है न कि कहीं से लेकर सस्कार किया गया है। तब यह तो स्पष्ट है कि मौर्य्य शब्द अपनी संस्कृत-व्युत्पत्ति के द्वारा मुरा का पुत्रवाला अर्थ नहीं प्रकट करता । यह वास्तव में कपोल-कल्पना है और यह भ्रम यूनानी लेखकों से प्रचारित किया गया है, जैसा कि ऊपर दिखाया जा चुका है । अर्थ-कथा में मौर्य्य शब्द की एक और व्याख्या मिलती है । शाक्य लोगों में आपस में बुद्ध के जीवन-काल में ही एक झगड़ा हुआ और कुछ लोग हिमवान् के पिप्पली-कानन-प्रदेश में अपना नगर बसाकर रहने लगे । उस नगर के सुन्दर घरो पर क्रौञ्च और मोर पक्षी के चित्र अंकिन थे, इसलिए वहाँ के शाक्य लोग मोरिय कहलाए। कुछ सिक्के विहार में ऐसे भी मिले हैं, जिनपर मयूर का चिह्न अकित है। इससे अनुमान किया जाता है कि वे मौर्य्य-काल के सिक्के है। किन्तु इससे भी उनके क्षत्रिय होने का प्रमाण ही मिलता है।

हिन्दी ‘मुद्राराक्षम' की भूमिका में भारतेन्दुजी लिखते है कि-- “महानन्द जो कि नन्दवश का था, उससे नौ पुत्र उत्पन्न हुए। बङी रानी से आठ और मुरा नाम्नी नापित-कन्या मे नवा चन्द्रगुप्त ।