पृष्ठ:चन्द्रगुप्त मौर्य्य.pdf/२२६

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स्वर-लिपि के संकेत-चिह्नों का ब्योरा । १-जिन स्वरो के नीचे विन्दु हो, वे मद्र सप्तक के ; जिसमे कोई विन्दु न हो, वे मध्य सप्तक के हैं तथा जिनके ऊपर विन्दु हो, वे तार सप्तक के है । जैसे---सु, स, से। | २--जिन स्वरो के नीचे लकीर हो, वे कोमल है । जैसे–रे, ग, घु, नि । जिनमें कोई चिह्न न हो, वे शुद्ध हैं। जैसे---रे, ग, ध, नि । ती मध्यम के ऊपर खडी पाई रहती है---4।। ३--आलकारिक स्वर ( गमक ) प्रधान स्वर के ऊपर दिया है। यथा--ध, म । १ म प । ४---जिन स्वरो के आगे बेडी पाई हो -' उसे उतनी मात्रा तक दीर्घ करना, जितनी पाइयाँ हो । जैसे---स----, रे--, ग-~- ५---जिस अक्षर के आगे जितने अवग्रह 5 हो, उतनी मात्रा तक दीर्घ करना । जैसे--रा 5 भ, सरवी ss, आ ss ज । | ६-" इस चिह्न में जितने स्वर या बोल रहे, वे एक मात्रा- काल में गाए, या बजाए जाएँगे । जैसे सरे, ग म ।। (७---जिस स्वर के ऊपर से किसी दूसरे स्वर तक चन्द्राकार लकीर जाय, वहाँ से वहाँ तक मीड समझना । जैसे---स----म, रे--प इत्यादि । ८--सम का चिह्न ४, ताल के लिए अक और खाली का द्योतक ० है । इनका विभाजन खड़ी लम्बी रेखाओ से दिखाया गया है। ९-३' यह विश्रान्ति का चिह्न है। ऐसे जितने चिह्न हो, उतने मान-काल तक विश्रान्ति जाननी । - - - - ३० १५