पृष्ठ:चिंतामणि.pdf/१४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१४०
चिन्तामणि

विशेष ध्यान रहता है। इसकी ठीक व्यञ्जना ऐसे वाक्यों में समझनी चाहिए—"तुमने मेरे साथ यह किया, वह किया। अब तक तो मैं सहता आया, अब नहीं सह सकता"। इसके आगे बढ़कर जब कोई दाँत पीसता और गरजता हुआ यह कहने लगे कि "मैं तुम्हें धूल में मिला दूँगा; तुम्हारा घर खोदकर फेंक दूँगा" तब क्रोध का पूर्ण स्वरूप समझना चाहिए।