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चिन्तामणि

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चिन्तामणि १४६ ताकते और सोचते-विचारते रह जाते हैं। उनकी चले तो वे प्रकृति की पुस्तक के इस बहुमूल्य पत्रे को अपवित्र निठुरता से नोच फेंके । यह समझ रख कि यह घर यदि आज तेरा हो जाय तो जो कुछ आकर्षण इसमे है वह सव हवा हो जाय । इसकी छत, खिड़की, दरवाजे, चढ़ी हुई फूल की लताएँ सब दीनों की पवित्र वस्तुएँ हैं ।” प्रकृति के प्रति जो भाव वर्डसवर्थ का था उसी को मैं सच्चे कव को भाव मानता हूँ । सदा असामान्य, अद्भुत और भव्य चमत्कार ढूंढनेवाली दृष्टि को मैं मार्मिक काव्यदृष्टि नहीं मानता । । जैसा पहले कहा जा चुका है केवल कहीं-कहीं वर्ड्सवर्थ ने प्रकृति की अन्तरात्मा ( Spirit of Nature ) की ओर सङ्केत किया है ; एक-आध जगह प्रकृति के ही किसी तथ्य के भीतर परोक्ष जगन् का भी आभास दिया है, जैसे, कल्यावस्था की स्मृति द्वारा STARTET AT ' ( Ode on Intimations of Immortait1y fro111 tecollections of Early Cli1fdliood ) नाम की कविता में । इसमें कवि कहता है-- “हमारा जन्म एक प्रकार की निद्रा या विस्मृति है । जीवन के नक्षत्र हमारी आत्मा का—जिसका उदय हमारे साथ होता है-- विधान कहीं अन्यत्र ही हुआ करता है वह किसी दूर देश से आती है। आने में न तो हम में एकदम विस्मृति ही रहती है, न शुद्धरूपता ही । ईश्वर के पास से हमें दिव्य और भव्य घन-खण्डों में से होते हुए आते है । बचपन में हमारे चारों ओर स्वर्ग का आभास कुछ-कुछ बना रहता है । पर ज्या-ज्यो चालक बढ़ता जाता है त्यो-यो इस भव्य कारागार की छाया में बंद होता जाता है। फिर भी उस क्ष्योति को आभास उसे कुछ काल तक अपने आनन्द में मिलता रहता है। युवावस्था की ओर बढ़ता हुआ वह यद्यपि अपने उद्य की दिशा से दूर होता जाता है, पर प्रकृति का पुजारी तब भी