पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पथ-निर्देश १२६ हुना, तो दस-बारह रुपए रोज़ के सिगार समझो । औरतें सिगार नहीं, केवल सिगरेट पीती हैं। असएव दिन-भर में दो-चार रुपए की सिगरेटें घे भी फंक डालती हैं। श्रय चाय का खर्च लीजिए। बढ़े आदमी कभी अकेले चाय नहीं पीते । जय पिएँगे, तो चार-छः श्रादमियों को साथ लेकर । दिन-भर में दस-बारह दफे चाय पीते है। इसमें भी चार-छः रुपए रोज का खर्च है, और महीने में आठ-दस यार 'टी-पार्टी' भी दी जाती है। एक-एक टी-पार्टी में बड़े आदमी चार-चार सौ, पाँच-पाँच सौ रुपए खर्च कर देते हैं ! घनश्याम-चाय में भला चार-पाँच सौ का क्या खर्च है ? क्या पार्टी में सैकड़ों श्रादमी सम्मिलित होते हैं ? विश्वेश्वर-फभी नहीं, बीस-पचीस आदमी से ज्यादा नहीं। घनश्याम-तो फिर इतना खर्च कैसे हो जाता है ? विश्वेश्वर-नाम टी-पार्टी का होता है; पर उसमें फल-फलहरी, मिठाई भी होती है, शराब भी उड़ती है । इसी से इतना खर्च बढ़ जाता है। घनश्याम-ये सय रुपए के चोंचले हैं। खैर, लंदन की बात छोड़िए । आप अपनी कहिए, आप कितने की सिगरेट पी जाते हैं ? विश्वेश्वर-एक रुपए रोज़ की सिगरेटें तो मैं अकेले फूक देता हूँ, और एक रुपए रोज़ की मित्रों की खातिर-तवाजे में खर्च हो जाती हैं। यह उस दशा में, जब बड़ी किफ़ायतशारो से काम लेता हूँ। घनश्याम-लंदन में रहे हो, उसका कुछ तो असर पाना ही चाहिए। विश्वेश्वर-बिलकुल यही बात है, सिगरेट और चाय का व्यसन तो वहीं का प्रसाद है। घनश्याम-और शराब ? शराव तो वहाँ खूब पी जाती है ? विश्वेश्वर-खूब से अगर आपका मतलब ज़्यादा से है, तो यह