सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कर्तव्य-पालन पांडेयजी 1 'निकाली, और 'खबरदार' कहकर एक हलका-सा हाथ जो मारा, तो रहमतअली मुँह के बल ज़मीन पर पा रहा। पांडेयजी समादतना से बोले-श्रापने इस लौंडे को बढ़ा गुस्तान बना रखा है। अपने बड़ों से भी गुस्तानी करता है। इतना सुनते ही सब मसलमान क्रोधांध होकर पांडेयजी पर टूट पड़े। खटाखट-खटाखट के अतिरिक्त न तो कुछ सुनाई पड़ता था 'और न कुछ दिखाई । पाँच मिनट तक यही दशा रही । पाँच मिनट बाद अन्य मुसलमान तो भाग खड़े हुए, केवल सादववाँ और रहमतनलीला भूमि पर पड़े कराह रहे थे । पांडेयजी के सिर से भी रक्त बह रहा था, और उनके नौकर के भी चोट लगी थी। उन दोनों को वहीं छोड़कर चले थाए । घर श्राकर उन्होंने अपना सिर धोया और पट्टी बाँधी। नौकर ने भी अपने घाव धोकर पट्टी बाँध ली। बीस मिनट बाद ही फिर शोर मचा। पांडेयजी ने नौकर से कहा-मालूम होता है, मुसलमान फिर आ गए । यह कहकर उन्होंने फिर लाठी उठाई। नौकर भी अपनी लाठी लेकर साथ चला। घटना-स्थल पर पहुंचे, तो देखा, सादतखाँ शोर मचा रहा हैं। पांडेयजी को देखते ही बोला-पंडितजी, खुदा के लिये मेरी आबरू बचाइए। आपके जाते हो दस-बारह हिंदू लाठी लेदर श्राए। पहले मुझे और मेरे लड़के को मारा, अव मेरे घर में घुस गए हैं- मेरे घर की औरतों को वेइज्जत कर रहे हैं। यह सुनते ही पांडेयजी की आँखों तले अंधेरा छा गया। वह तुरंत ‘सनादतखाँ के घर में घुसे। उन्होंने देखा, सादतन्नों की पनी को दो-तीन हिंदू पकड़े खड़े हैं, और एक व्यक्ति उनकी युवती कन्या को पकड़कर घसीट रहा है। यह देखते ही पांडेयजी ने गर्जकर कहा-कायरो: यह क्या करते -