पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१७३

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कर्तव्य-पालन १६७ ! . चारा नुचित का ज्ञान होता, तो लहंगे पहनकर घर में घुसे बैठे रहते ! तुम्हारे-जैसे ही जनानों ने हिंदू-जाति को बदनाम किया, और मुसलमानों का साहस बढ़ाया। पुरपों के सामने तो निकलते नानी मरती थी, अब स्त्रियों को अपनी वीरता दिखाने आए हो ? जाओ, गंगा में जाकर डूब मरो ! तुम लोगों के मरने से हिंदू-जाति साफ हो जायगी । फिर एक हिंदू ने कहा-मुसलमान हमारी माँ-बेटियों को बेइज्जत करते हैं । श्राप उनको यह व्याख्यान क्यों नहीं सुनाते ? पांडेयजी-मैं हिंदू हूँ, हिंदुओं से कहने का मेरा अधिकार है । इसके अतिरिक्त, मूखों, तुम मुसलमानों के अवगुणों की नक़त करते हो ? यदि नक़ल करना है, तो उनमें निर्भयता, साहस, सगठन आदि जो गुण हैं, उनकी नकल करो। परंतु यह तो म्याऊँ का और है न, उसे कैसे कर सकते हो ! अवलाशों और बच्चों को मुलायम पाया, इसलिये इस बात में मट मुसलमानों की नकल करने दौड़े। बस, मैं कहता हूँ, चुपचाप चले जानो, अन्यथा एक-एक को गिन- गिनकर यहीं सुला दूंगा। यह कहकर पांडेयजी ने लाठी घुमाई। यह देखते ही सब हिंदू घबराकर वहाँ से हटे, और बाहर चले श्राए । सभादतखाँ भी पांडेयजी के पीछे-पीछे चला पाया था, और एक खंभे की आड़ में खड़ा होकर यह सब लीला देख रहा था। जब हिंदू चले गए, पोटेयजी ने समादप्तराँ की पत्नी से कहा-बहन, तुम बेखौफ होकर बैठो। मेरे रहते तुम पर कभी आँच न पाने पावेगी। हम मर्द-मदं आपस में लड़ें या कटें; पर तुम्हारी हिताज़त अपनी जान देकर करेंगे। सश्रादतखाँ की पत्नी ने रोते हुए कहा-भैया, मैं हमेशा इनको मना करती रही कि हिंदुओं से दुश्मनी क्यों मोल लेते हो ? सव नुदा के वैदे हैं। मगर इन्होंने न माना। आज तुम न पा जावे, तो हमारी आबरू जाने में बाकी ही क्या रह गया था! "