पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ईश्वर का डर १७३. - बामण देवता गाँसू पोछते हुए बोले-सरकार, लुटिया-याली सब चली गई । मैं तो, सरकार, मर गया। पेट काट-काटकर बाल-बच्चों के लिये जो कुछ जोड़ा था, सब चला गया ! ठाकुर साहब-क्या हुआ ? चोरी हो गई क्या? बिंदा-हाँ सरकार, सब चला गया । महराजिन के पास जो सौपचास रुपए का गहना था, वह भी चला गया! ठाकुर साहब-यह तो बड़ी बेजा बात हुई । तुम्हारा किसी पर संदेह है? विदा-श्रव बिना देखें किसको कहूँ सरकार । हाँ, ढकना चमार कहता है कि रात के दस बजे जब वह पेशाब करने उठा था, तो उसने कालका अहीर को एक श्रादमी के साथ कुछ खुसुर-पुसुर करते . देखा था। ठाकुर साहब-कौन कालका ! बिंदा-वही सधुवा का लड़का, जो अभी थोड़े दिन हुए पाया है, शहर में नौकरी करता है। ठाकुर साहब-अरे, वह तो बेचारा बड़ा भला आदमी है। वह ऐसा काम नहीं कर सकता। बिंदा-सरकार, यही तो मैं भी कहता हूँ। ठाकुर साहब बोले-मगर यह भी हम नहीं कह सकते कि यह उसका काम नहीं है। किसी के पेट का क्या पता ! अच्छा, ढकना चमार को बुलानो तो उसी समय एक गुहेत. दौड़ाया गया। वह ढकना चमार को बुला लाया। अकुर साहब ने पूछा-क्यों रे ढकना, क्या बात है. ? ठीक- ठीक क ढकना बोला-सरकार, बात यह है कि कल रात के कोई दस :