पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ईश्वर का हर १८६ साथ कौन नेकी की है ? गवाही जरूर दो। बात तो ठीक हुई है, फिर पाप-पुन्य काहे का। सधुवा-ठीक तो है, पर वहाँ वो कहना पड़ेगा कि हमने अपनी आँखों से देखा है। मैं तो उस बखत वहाँ था नहीं। कालका-~-इस सोच-विचार में न पड़ो। सब ठीक है। ऐसे के साथ ऐसा ही करना चाहिए । सत्र गवाहों ने वैसा ही कहा, जैसा कि पुलीस ने सिखाया था। जब सधुग की बारी आई, तब उसका सारा शरीर कॉप रहा था। जब उससे प्रश्न किया गया, तो वह बोला-हजूर, मैं उस बखत वहाँ नहीं, अपने गाँव में था। मुझे नहीं मालूम, किसने मारा । हाँ, मैंने यह ज़रूर सुना कि ठाकुर ने सिवदीन को गुहेत से पिटवाया था। मैजिस्ट्रेट-गुदत से पिटवाया, और खुद भी मारा ? सधुवा-नहीं हजूर, खुद तो खाली दो-एक डंडे मारे थे। उनकी मार से यह नहीं भरा, मरा गुट्टैत की मारे से । मैजिस्ट्रेट-तुम वहाँ मौजूद था ? सधुवा-नहीं सरकार, मैंने सुना था। मैजिस्ट्रेट-किससे सुना? सधुवा-गाँव के सब आदमी यही कहते थे मैजिस्ट्रेट को यह बात जंच गई कि सधुवा सच्ची गवाही दे रहा है। उन्होंने डाकुर साहब को तीन वरस की सहत कैद की सजा और गुहेत को सेशन-सिपुर्द कर दिया।

जेल जाते समय गकुर साहब ने. सधुवा को अपने पास बुलाया, और रोते हुए कहा-मैंने तुम्हारे साथ जो कुछ किया था, उसे भूनकर तुमने मेरे साथ यह नेकी की है। इसे मैं जन्म-भर नहीं भूलूँगा । सधुवा, तूने ग़रीब होते हुए भी यह दिखा दिया कि संसार में सच्चे,