सुधार गादीवाले ने कुछ क्षण तक बाबू साहब को सर से पैर तक देखा। तत्पश्चात् लापरवाही से बोला-साहब कोई बात हो, समय पढ़े दो-चार पाने का मुंह नहीं देखना चाहिए। बावू साहब-आखिर वात क्या है, कुछ यतलाश्रो तो। गाड़ीवाला-अरे साहब, क्या बता ? ऐसी बातें तो रोज़ ही हुआ करती है, किसे-किसे बतायें और कहाँ तक बतावें। बाबूल-नहीं सो बात नहीं, तुम हमसे बतायो, हम उसकी दवा कर देंगे। गाढ़ीवाले ने एक बार फिर बाबू साहब को सर से पैर तक देखा, और पास ही खड़े हुए एक दूसरे गाड़ीवान की ओर देखकर मुल. किराया । दूसरा गाड़ीधाला बोला-अरे बाबूजी, अब उस बात के कहने से क्या फायदा, जो होना था, सो हो गया। बाबू०-यही तो तुम लोगों में दोष है। तुम लोग अत्याचार सहना पसंद करते हो, पर उसको दूर करने की चेष्टा नहीं करते, इसीलिये तुम्हें जो चाहता है, दवा लेता है। गाड़ीवाला-अरे साहब, फिर क्या करें ? ग़म खाना अच्छा है। दो. चार पाने के लिये कौन झगड़ा करे । दो-चार थाने में हम कुछ मर नहीं जायेंगे और वह कुछ लखपती नहीं हो जायँगे। एक बात-की- बात है । हाँ, इतना बुरा मालूम होता है कि दिन करके लेते हैं। बाबू साहब समझ गए कि चुंगीवालों ने कुछ ऐा है। उधर गाढ़ीवाले बाबू साहब से यह बात कहना नहीं चाहते थे, क्योंकि वे उसमें कोई लाभ नहीं समझते थे। पर मनुष्य की प्रकृति के अनुसार कहने की इच्छा न होते हुए भी सहानुभूति के आगे अपने हृदय की उमड़ास रोकने में असमर्थ होकर क्रमशः सब उगल रहे थे। बाबू साहब ने कहा-देखो, इस बात का छिपाना ठीक नहीं। यदि तुम लोग हमसे सब बात साफ-साफ कह दो और थोड़ा-सा
पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/२८
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