पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/३५

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चिनशाना राधाकांत-सय पर लागू हो लफती है, लागू करने का दंग . होना चाहिए । न भी हो तब भी पहले चेष्टा करके देख लेना चाहिए। मेरा विश्वास है कि सौ में नव्ये हालसों में यह जाग हो सकती है। शिवकुमार-मैं इसे नहीं मानता। राधाकांस-में दिखा दूंगा। परंतु इसके पहले जरा रामधन के परिवार की सुध लेना तुम्हारा कर्तव्य है। . - . दूसरे दिन बाबू शिवकुमार से मिलने पर पं० राधाकांत ने पूछा-कहो, रामधन के परिवार की सुध ली, उनकी दशा देखी ? शिवकुमार ने सर झुकाकर कहा-देनी । राधाकांत-क्या दशा है? एक दीवं निःश्वास लेकर बोले- क्या कहें, न फाना ही अच्छा है। रादि मुझे मालूम होता, तो मैं रामधन को फंसाने की चेष्टा कभी न भरता 1 किलानों को जितना कष्ट था, वह उन्हें इतना असह्य नहीं था, जितना असा रामधन के परिवार को उनका वर्तमान कष्ट है। उसका बाप रात-दिन बैठा रोया करता है। स्त्री को भी दशा कहने योग्य नहीं । छोटे-छोटे बच्चों को खाने का ठिकाना नहीं। जो कुछ थोड़ा-बहुत था, वह मुकदमे में खर्च हो गया, कुछ जेयर जुर्माना श्रदा करने में चला गया। दो-चार चाँदी की चीज़ बची हैं, उन्हें स्त्री मुहाग के श्राभूपरण सममर बेचना नहीं चाहती थी ! मुझे पढ़ोसशनों से मालूम हुआ कि दो रोग उपवास करने के पश्चात् रामधन की नी पैर के बड़े बेचने पर राजी हुई । नत ! कितना करुणा पूर्ण दृश्य है। शरी श्रादमी शिसी से मांग नहीं सकते । दो-चार छोटे-मोटे. जेवर है, वे दो-तीन महीने भी तो पूरा नहीं पाट सपते । उनके समाप्त हो जाने पर वे क्या खायेंगे? राधाकांत-यह श्रापकी देश-मक्ति है। ।