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पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/१८५

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चोखे चौपदे

प्यास पैसों की उन्हें है जब लगी।
क्यों न तो पानी भरेंगे पनभरे॥
जग-विभव जब आँख में है भर रहा।
किस तरह तो मन भरे का मनभरे॥

दौड़ने मे ठोकरें जिस को लगीं।
वह भला कैसे न मुँह के बल गिरे॥
फेर की है बात इस में कौन सी।
जो किये मन फेर कोई मन फिरे॥

बैल में बैलपन मिलेगा ही।
क्यों करेगा न लैलपन छैला॥
क्यों न तन में हमें मिलेगा मल।
क्यों न होगा मलीन मन मैला॥

फूल किस को गूलरों से मिल सके।
फल सरों से है न कोई पा सका॥
मोतियों से मिल सका पानी किसे।
कौन मन के मोदकों को खा सका॥