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निराले नगीने

है खिला फूल, लाल अगारा।
बाग सुन्दर बड़ा भयानक बन॥
काठ उकठा हरा भरा पौधा।
है गरम है बड़ा नरम नर-मन॥

है बड़ा ही सुभाषना सुन्दर।
है उसी का कमाल भोलापन॥
लोक के लाड़-प्यार-वालों का।
है बड़ा लाड़-प्यार-वाला मन॥

क्यों न उस पर वार में लाखों टके।
है जगत में दूसरा ऐसा न धन॥
है निराला लाल आला माल है।
गोदियों के लाल का अनमोल मन॥

है उसी से भलाइयाँ उपजी।
लोक का लाभ है उसी का धन॥
कब न जन-हित रहा सजन उस का।
है सुजनता भरा सुजन का मन॥