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चोखे चौपदे

जो न होतो हरी हरी पत्ती।
कौन तो ताप धूप का खोती॥
क्यां भली छॉह तन तपे पाते।
क्यों तपी आँख तरबतर होती।।

धूप तीखी पतन तपी रूखी।
तो बहुत हो उसे सता पाती॥
तर न करते अगर हरे पत्ते।
किस तरह आँख में तरी आती।।

बसंत की बेलि

खिल दिलों को है बहुत बेलमा रही।
है फलों फूलों दलों से भर रही।।
खेल कितने खेल प्यारी पौन से।
बेलियाँ अठखेलियाँ है कर रही।।

बेलियों मे हुई छगूनी छवि।
बहु छटाया गया लता का तन॥
फूल फल दल बहुत लगे फबने।
पा निराली फबन फबोले बन॥