मदन इन्ही बातों को सोचता हुआ लौट आया, और जो अपना
मासिक वेतन जमा किया था, वह--तथा कुछ कपड़े आदि आवश्यक सामान लेकर वहां से चला गया। जाते समय उसने एक पत्र लिखकर वही छोड़ दिया।
जब बहुत देर तक लोगों ने मदन को नहीं देखा, तब चिन्तित हुए । खोज करने से उनको मदन का पत्र मिला, जिसे किशोरनाथ ने पढ़ा और पढ़कर उसका मर्म पिता को समझा दिया।
पत्र का भाव समझते ही उनकी सब आशा निर्मूल हो गयी। उन्होंने कहा--किशोर, देखो, हमने सोचा था कि मृणालिनी किसी कुलीन हिन्दू को समर्पित हो, परन्तु वह नही हुआ। इतना व्यय और परिश्रम, जो मदन के लिए किया गया, सब व्यर्थ हुआ। अब वह कभी मृणालिनी से व्याह नही करेगा, जैसा कि उसके पत्र से विदित होता है।
आपके उस व्यवहार ने उसे और भी भड़का दिया ।अब वह कभी ब्याह न करेगा।
मृणालिनी का क्या होगा?
जो उसके भाग्य में है !
क्या जाते समय मदन नेमणालिनी से भी भेट नहीं की ?
पूछने से मालूम होगा।
इतना कहकर किशोर मृणालिनी के पास गया। मदन उससे भी नही मिला था। किशोर ने आकर पिता से सब हाल कह दिया ।
अमरनाथ बहुत ही शोकग्रस्त हुए । बस उसी दिन से उनकी चिन्ता
बढ़ने लगी। क्रमशः वह नित्य ही मद्य-सेवन करने लगे । वह तो प्रायःअपनी चिन्ता दूर करने के लिए मद्य-पान करते थे, किन्तु उसका फल उलटा हुआ---उनकी दशा और भी बुरी हो चली; यहां तक कि वह सब समय पान करने लगे, काम-काज देखना-भालना