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मदन-मृणालिनी
 


खींचकर बैठ गयी। उसने किशोर से कहा--क्यो भैया, पिताजी की कैसी अवस्था है ? काम-काज की भी दशा अच्छी नहीं है, तुम भी चिन्ता से व्याकुल रहते हो, यह क्या है ?

किशोरनाथ---बहन, कुछ न पूछो, पिताजी की अवस्था तो तुम देख ही रही हो। काम-काज की अवस्था भी अत्यन्त शोचनीय हो रही है। पचास लाख रुपये के लगभग बाजार का देना है; और आफिस का रुपया सब बाजार में फंस गया है, जो कि काम देखे-भाले बिना पिताजी की अस्वस्थता के कारण दब-सा गया है। इसी सोच मे बैठा हुआ हूँ कि ईश्वर क्या करेंगे!

मृणालिनी भयातुरा हो गयी । उसके नेत्रों से आंसुओं की धारा बहने लगी। किशोर उसे समझाने लगा; फिर बोला--केवल एक ईमानदार कर्मचारी अगर काम-काज की देख-भाल किया करता, तो यह अवस्था न होती। आज यदि मदन होता, तो हमलोगों की यह दशा न होती।

मदन का नाम सुनते ही मृणालिनी कुछ विवर्ण हो गयी और उसकी आंखों में आंसू भर आये। इतने में दरवान ने आकर कहा---सरकार, एक रजिस्ट्री चिट्ठी मृणालिनी देवी के नाम से आयी है,डाकिया बाहर खड़ा है।

किशोर ने कहा--बुला लाओ ।

किशोर ने वह रजिस्ट्री लेकर खोली । उसमे एक पत्र और एक स्टाम्प का कागज था! देखकर किशोर ने मृणालिनी के आगे फेक किया ! मृणालिनी ने फिर वह पत्र किशोर के हाथ म देकर पढ़ने के लिये कहा । किशोर पढ़ने लगा---

"मृणालिनी!

आज मै तुमको पत्र लिख रहा हूँ। आशा है कि तुम इसे ध्यान देकर पढ़ोगी। मै एक अनजाने स्थान का रहनेवाला कंगाल के भेष में तुमसे मिला और तुम्हारे परिवार में पालित हुआ। तुम्हारे