पृष्ठ:छाया.djvu/८७

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फूल नहीं खिलते है, बेले की कलियां मुरझाई जा रही है। समय में नीरद ने सींचा नहीं, किसी माली की भी दृष्टि उस ओर नहीं घूमी; अकाल में बिना खिले कुसुम-कोरक म्लान होना ही चाहता है। अकस्मात् डूबते सूर्य की पीली किरणों की आभा से चमकता हुआ एक बादल का टुकड़ा स्वर्ण-वर्षा कर गया परोपकारी पवन उन छींटों को ढकेलकर उन्हें एक कोरक पर लाद गया। भला इतना भार वह कैसे सह सकता है ! सब ढुलककर धरणी पर गिर पड़े। कोरक भी कुछ हरा हो गया।

यमुना के बीच धारा में एक छोटी, पर बहुत ही सुन्दर तरणी, मन्द पवन के सहारे धीरे-धीरे बह रही है। सामने के महल से अनेक चन्द्रमुख निकलकर उसे देख रहे है । चार कोमल सुन्दरियां डांड़ें चला रही है, और एक बैठी हुई छोटी सितारी बजा रही है । सामने, एक भव्य पुरुष बैठा हुआ उसकी ओर निनिमेष दृष्टि से देख रहा है।

पाठक ! यह प्रसिद्ध शाहआलम दिल्ली के बादशाह है । जल- क्रीड़ा हो रही है।

सान्ध्य-सूर्य की लालिमा जीनत-महल के अरुण मुख-मंडल की शोभा और भी बढ़ा रही है। प्रणयी बादशाह उस आतप-मंडित मुखारविन्द की ओर सतृष्ण नयन से देख रहे है, जिसपर बार-बार गर्व और लज्जा का दुबारा रंग चढ़ता-उतरता है, और इसी कारण सितार का स्वर भी बहुत शीघ्र चढ़ता-उतरता है । संगीत, तार पर चढ़कर दौड़ता हुआ, व्याकुल होकर घूम रहा है। क्षण-भर भी विश्राम नहीं।