पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/१०१

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जगद्विनोद। (१०१ अथ ब्रीडाको उदाहरण-सवैया ॥ काल्हिपरीफिरसाजवीस्यानसुआजुतौ नैनसोनैन मिलालै । त्योपदमाकरप्रीतिप्रतीतिमें नीतिकीरीति महाउरशालै ॥ ये दिन यौवन जातोइतै तन लाज इती तु करैगीकहांलै । नेकतौदेखनदेमुखचन्द्रसोंचन्द्रमुखीमति घुटघालै ॥ ७२ ॥ दोहा--प्रथम समागम की कथा, बूझी सखिन जुआय । मुख नवाय सकुचाय तिय, रही सु घुटनाय ॥ निरदैपनसों उग्रता, कहत सुमति सबकोय । शयन कहावत सोहबो, वहै सु निद्रा होय॥७४॥ अथ उग्रताका उदाहरण ॥ कवित्त--सिंधुके सुपूत सुत सिंधु तनयाके बंधु, मंदिर अमंद शुभ बुंदर सुधाई के । कहै पदमाकर गिरीशकेबसे हौ शीश, तारनके ईश कुल कारन कन्हाई के ॥ हालही के विरह विचारी बजबालही पै, ज्वाल से जगावत गुआलसी लुन्हाई के। येरे मतिमन्द चन्द आवत न तोहिं लाज, हैकै द्विजराज काज करत कसाई के ॥७५॥ सहा-कहा कहौं सखि कहिको, हिय निरदैपन आज । तनु जारत पारतपिपति, अपतिउजारत लाज॥७६॥ अथ निद्राका उदाहरण ॥ कवित्त--चहचही चुभके चुभीहै चोंक चुंबनकी,