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जगद्विनोद । (१३३) जासु देवता चतुरमुख, रंग बखानत पीत । सो अद्भुत रस जानिये,सकल रसनको भीत ॥११॥ अद्भुतरसका उदाहरण ॥ कवित्त-अधम अजान एक चढिकै विमान भाष्यो, पूँछतहौं गंगा तोहि परिपरिपाँइहौं । कहै पदमाकर कृपाकार बतावै सांची, देखे अति अदभुत रावरे सुभाइहौं । तेरे गुण गानहुँ की महिमा महान मैया, कान कान नाइके जहान मध्य छाई हौं । एक मुख गाये ताके पंचमुख पाये अब, पंचमुखगाईहौं तो केते मुख पाइहौं ।॥ १२ ॥ पुनर्यथा ॥ कवित्त-गोपी ग्वाल माली जुरे आपुस में कहैं आली, कोऊ यशुदाके अवतारयो इन्द्रजाली है । कहै पदमाकर करै को यों उतालीजापै, रहन न पावै कहुं एको फन खाली है । देखै देवताली भई विधिके खुशाली कूदि, किलकत काली हरि हँसत कपाली है। जनमको चाली यरि अद्भुत दैख्याली आजु, कालीकी फनाली पै नचत बनमालीहै ॥१३॥