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पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/२६

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(२६) जगद्विनोद । आई तोहिं पीर न पराई महापापिन तू, पापीलौं गई न कहूं वापीन्हाइ आई है ॥ २८ ॥ दोहा--खान पान शय्या शयन, जासु भरोसे आय । करै सो छल अलि आपसों, तासों कहा बसाय ॥ पियसों करै जो मान तिय, वहै मानिनी जान । ताको कहत उदाहरण, दोहा कवित बखान ॥ माननीका उदाहरण--सवैया मोहिं तुम्है न उन्हें न इन्हें मनभावति सोन मनावन ऐहै त्योपदमाकर मोरनको सुनि शोरकहो नहिंको अकुलैहै, धीर धरोकिन मेरे गोविंद घरी इकमें जो घटा घहरैहै । आपहि ते तजिमानतिया हरुबैहरुबै गरुबैलगिजैहै ॥३१॥ दोहा--और तजे तो रहु सजे, भूषण अमल अमोल । तजन कह्यो न सुहागमें, अंजनतिलक तमोल॥३२॥ वहवक्रोकति गर्विता, द्विविध कहत रसधाम । प्रेमगर्विता एक पुनि, रूप गर्विता नाम ॥ ३३ ॥ करै प्रेमको गर्व जो, प्रेम गर्विता नारि । रूपगर्विता होय वह, रूप गर्वको धारि ॥ ३४ ॥ अथ प्रेमगर्विताको उदाहरण-सवैया । मोबिनमाइनखाइकछू पदमाकरत्यौभइभावी अचेत है। वीरनआइलिवाइवेकोतिनकीमृदुबानिहूमानिनलेतहै । प्रीतमकोसमुझावतिक्योंनहियेसखीतूजुपैराखतिहेतहै । औरतोमोहिंसबैसुखरीदुखरीयहैमाइकैजाननदेत है ॥ ३५ ॥