सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(७२) जगद्विनोद । दोहा--गौरी को जु मोपाल को, होरीके मिस ल्याय । बिजन सांकरी खोरिमें, दोऊदिये मिलाय ॥१२॥ आधुहि अपनो दूतपन, करै जु अपने काज । ताहि स्वयंदूती कहत, ग्रन्थनमें कविराज ॥ ४३ ॥ अथ स्वयंदूतिका का उदाहरण सवैया ॥ रूपिकहूंकढ़िमाली गयो गई ताहिमनावनसासु उताली ॥ त्यों पदमाकरन्हाननदीजेहुतींसजनी सँग नाचन वाली ॥ मंजु महाछबि की कवकी यह नीकी निकुंजपरीमबखाली ॥ हौइहबागकीमालिनिहौंइतआयभलेतुमहौवनमाली ॥ १४ ॥ दोहा--मोहीसों किन भेटले, जौलौं मिले न बाम । शीत भीत तेरो हियो, मेरो हियो हमाम ॥ ४५ ॥ षट्ऋतु वर्णन-अथ वसन्त ॥ कवित्त--कूलनमें केलिमें केलिमें कछारनमें कुंजनमें, क्यारिनमें कलिन कलीन किलकत है। कहै पदमाकर परागनमें पानहूं में, पाननमें पीकमें पलाशन पगंत है ॥ हारमें दिशान में दुनीमें देश देशन में, देखो दीप दीपनमें दीपत दिगंत है। बीथिन में ब्रजमें नवेलिन में बेलिन में, बनन में बागनमें बगरी बमत है ॥४६॥ और मांति कुंजनमें मुंजरत मौर भीर,