पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/९६

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(९६) जगद्विनोद। दोहा--कोमल कंज मृणाल, किये कलानिधि बास । कबको ध्यान रह्योजु धरि, मित्र मिलनकी आस ॥ आपुहि अपनी देहको, ज्ञान जबै नहिं होय । विरहदुःख चिंता जनित, मोह कहावत सोय ॥ अथ मोहका उदाहरण -सवैया ! %D दोउनको सुधि हैनकछू बुधिवाही बलाइमें बड़ि वहीहै । त्योपदमाकरदीजैमिलाय क्योंचंग चायनको उमही हैं । आजुहिकीवादिखादिख मेंदशादो उनकीनहिंजात कही है । मोहनमोहि रह्यो कबकोकबकी वह मोहनी मोहि रही है । दोहा-सटपटाति तसबी हँसी, दीह दृगनमें मेह सुबबाल मोही परत, निमाही को नेह ॥४५॥ सुपन स्वप्नको देखिबो, जगिबो बहै बिबोध । सुमिरनबीती बातको, सुमृति भाव सब शोध।४६॥ अथ स्वप्नका उदाहरण-सवैया ॥ कांपिरहेछिनसोवतहूं कछु भाषिवोमो अनुसारि रही है। त्यों पदमाकर रंचरुमचनि स्वेदके बुन्दनिधारि रही है ॥ वेषदिखादिखी के सुखमें तनकी तनको नसम्हार रही है। जानतिहामखिसापनेमें दलालको नारि निहारि रही है । दोहा-क्योंकार झूठी मानिये, सखि सपने की बात । जु हार हरयो सोवत हियो, मो न पाइयत प्रात॥४८॥ -