पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/९९

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जगद्विनोद । (९९) दोहा-गुलपर गालिब कमल है, कमलन पै सुगुलाब ॥ गालिब गहबगुलाब पै, मोतनसुरभिसुभाव ॥ ५८ ॥ जहां हितूके मिलन हित, चाह रहति हियमाहिं । उतसुकता तासों कहत, सब ग्रन्थनमें चाहिं ॥५९॥ अथ उत्सुकता वर्णन ॥ कवित-ताकिये तितै तितै कुसुम्भ सींचु बोई परै, प्यारी परबीन पाउँ धरति जित जित कहै पदमाकर सुपौनते उताली बन-मालीपै, चली यों बाल बासर बितै वितै । भारहीके डारन उतार देत आभरन, हीरनके हारदेत हिलिन हितै हितै। चांदनी के चौसर चहूँघाचौक चांदनीमें, चांदनीसी आई चन्द चांदनी चितै चितै ॥६॥ दोहा-सजे विभूषण वसन सब, सुपिय मिलनकी हौस । सह्यो परति नहिं कैसहूँ, रह्यो अधघरी यौस ।। जो जहँकार कछु चातुरी, दशा दुरावै आय । ताहीसों अवहित्थु यह, भाव कहत कविराय ॥ अथ अवहित्थुका वर्णन सवैया । जोर जगी यमुना जल धारमें धाय धसीजल केलीकीमाती। त्यों पदमाकर पैगचलैं उछलै जब तुंग तरंग विधाती ॥ टूटे हरा छरा छटे सबै सरबोर भई अगिया रंगराती। कोकहतो यह मेरी दशा गहतो नगोविंदतोमैं बहिजाती ॥ "