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पृष्ठ:जनमेजय का नागयज्ञ.djvu/१०९

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जनमेजय का नाग-यज्ञ

मणिमाला―भला कुकर्म का भी कभी अच्छा परिणाम हुआ है? (कान लगाकर सुनती है) भीतर कुछ कोलाहल सा सुनाई दे रहा है। मैं जाती हूँ।

[ जाना चाहती है। आस्तीक हाथ पकड़ कर रोकता है। ]

आस्तीक―ठहरो मणि! तुम न जाओ।

मणिमाला―छोड़ दो भाई। मैं अवश्य जाऊँगी; इसीलिये वेश बदल कर आई हूँ।

[ मणिमाला हाथ छुड़ाकर चली जाती है। माणवक का प्रवेश ]

आस्तीक―कौन? माणवक!

माणवक―भाई आस्तीक!

( खिड़की खुलती है। मृछिर्त वपुष्टमा को लिये कई नागों का उसीसे वाहर आना। सरमा पीछे से आकर उनको रोकना चाहती है नागों का वपुष्टमा को ले जाने का प्रयत्न।)

माणवक―तुम इसे मेरी रक्षा में छोड़ दो नागराज की सहायता करो।

(घबड़ाये हुए नाग वपुष्टमा को उसी के हाथ सौंप देते हैं)

सरमा―यहाँ वात मत करो। शीघ्र चलो।

आस्तीक―किन्तु मणिमाला भी यही है।

सरमा―आर्य लोग स्त्रियो की हत्या नहीं करते। चलो।

[ चारो जाते हैं। रक्षकों से युद्ध करते हुए तक्षक का प्रवेश। और भी आर्य सैनिक आ जाते है। तक्षक और मणिमाला दोनों वन्दी होते हैं ]

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