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पृष्ठ:जनमेजय का नागयज्ञ.djvu/१२४

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तीसरा अङ्क―आठवाँ दृश्य

सरमा―इस नागवाला मणिमाला को आप अपनी वधू बनाइए।

[ जनमेजय सिर नीचा कर लेता है ]
 

व्यास―किन्तु सरमा, यह तुम अनधिकार चर्चा करती हो। पहले वपुष्टमा को बुलाओ; वे स्वीकृति दें।

सरमा―यही हो। [ जाकर वपुष्टमा को ले आती है ]

वपुष्टमा―आर्यपुत्र की जय हो!

जनमेजय―षड्यन्त्र! यह कभी न होगा! भला धर्षिता स्त्री को कौन ग्रहण करेगा!

व्यास―सम्राट, तुम्ही करोगे! जब पुरुषों ने स्त्रियों की रक्षा का भार लिया है, और उनको केवल अपनी सीमा में स्वतन्त्रता मिली है, तब यदि उनकी अरक्षित अवस्था मे उन पर अत्याचार होगा, तो उसका अपराध उनके रक्षको के सिर होगा। क्या अबला होने के कारण यही सब ओर से अपराधिनी है? नहीं, मैं कह सकता हूँ कि यह पवित्र है; कमलवन से निकले हुए प्रभात के मलय पवन के समान शुद्ध है। इसे स्वीकार करना होगा। वपुष्टमा, आगे बढ़ो।

वपुष्टमा―नाथ! दासी श्रीचरणो को शपथ करके कहती है कि यह पवित्र है।

[ पैर पकडती है ]
 

जनमेजय―(व्यास की ओर देखकर) उठो महिषी, उठो।

[उठाता है]
 

वपुष्टमा―आर्यपुत्र! सरमा देवी की बात माननी ही पड़ेगी। आओ बहन मणिमाला।९