पृष्ठ:जनमेजय का नागयज्ञ.djvu/४०

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पहला अङ्क―पाँचवाँ दृश्य

सकता। इसी से आशा है कि वह फिर आपसे मिलेगा। सरमा भी अपनी करनी का फल पा रही है। वह अत्यन्त अपमानित की गई है। सम्भव है, वह फिर नाग कुल मे लौट आवे।

तक्षक―मणिकुण्डल! कौन, वे ही, जो कभी हम नागो की अमूल्य सम्पत्ति थे! हाय! वासुकि, वे फिर कहाँ मिलेंगे! किन्तु यदि वे मिल जाते, तो काश्यप को देकर उसे अपनी ओर मिला लेता। राजकुल का पूरा समाचार काश्यप ही से मिल सकता है।

काश्यप―( प्रवेश करके ) नागनाथ की जय हो!

तक्षक―प्रणाम करता हूँ ब्राह्मण देवता। कुशल तो है?

काश्यप―आर्य, क्षत्रियों को घमण्ड हो गया है। उनके सवि- नय प्रणाम मे भी एक तीखा तिरस्कार भरा रहता है। ब्राह्मणों का सम्मान वे सहन नहीं कर सकते। वे राजमद से इतने मत्त हैं कि अध्यात्म गुरु को अवहेला क्या, कभी कभी परिहास तक कर बैठते हैं―उनके क्रोध को हँसो मे उड़ा देते हैं। यह बात इस विशुद्ध ऋषि-कुल-सम्भूत शरीर को सहन नहीं है। (ठहर कर) नागराज, अभी तक क्षत्रिय स्पष्ट रूप से ब्राह्मणो के नेतृत्व का विरोध नहीं कर सके है। अभी वे प्राचीन संस्कार के वशीभूत है।

तक्षक―तो फिर क्या आज्ञा है?

काश्यप―घबराओ मत। अभी ब्राह्मणो मे वह बल है, तप का वह तेज है कि वे नाग जाति को क्षत्रिय बना लें। तुम लोगो को भी चाहिए कि जहाँ तक हो सके, आर्य जाति की इन्द्रिय पराय- णता के सहायक बनो। उनमें अपने रक्त का मिश्रण करो।